लखनऊ। भारी बहुमत के साथ प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सरकार सत्ता में आई। इसके बाद प्रधानमंत्री मोदी के द्वारा एक महत्वकांक्षी योजना शुरू की गई, जिसका नाम रखा गाय सांसद आदर्श ग्राम योजना। जिसका उद्देशय था कि प्रत्येक सांसद अपन संसदीय क्षेत्र के किसी एक गांव को गोद लेकर उसका विकास करायेंगे और गांव को मॉडल के तौर पर स्थापित करेंगे। अब पीएम मोदी की इस महत्वकांक्षी योजना को ज्यादातर सांसदों ने सिरे से नकार दिया है।
सांसद आदर्श ग्राम योजना के प्रति सांसदों की बेरूख़ी का आलम इस बात से समझा जा सकता है। कि इसके दूसरे चरण के लिए 80 फीसदी से ज्यादा सांसदों ने अबतक गांवों का चयन ही नहीं किया है। विपक्ष ही नहीं बल्कि सत्ता पक्ष के सांसदों ने भी पीएम की इस योजना से दूरी बना ली है।
दूसरे चरण में लोकसभा के 543 सांसदों में अब तक केवल 99 सांसदों ने ही कोई गांव गोद लिया है। इस मामले में राज्य सभा के सांसद और भी सुस्त हैं। राज्यसभा के कुल 253 में से केवल 29 सांसदों ने ही गांवों का चयन किया है।
बता दें कि पहले चरण में लोकसभा के 499 सांसदों ने गांव गोद लिया था। जबकि राज्य सभा के 203 सांसदों ने गांव गोद लिया था। यही नहीं मोदी सरकार के दो तिहाई मंत्रियों ने भी दूसरे चरण में अबतक कोई गांव गोद नहीं लिया है।
जबकि दूसरे चरण में गांवों का चयन किये जाने की समय सीमा जनवरी 2016 में ही खत्म हो चुकी है। अब तो केन्द्र सरकार भी इस बात को मानती है कि इस योजना में सांसद ज़्यादा रूचि नहीं दिखा रहे। इसकी बड़ी वजह यह मानी जा रही है कि इस योजना के लिए अलग से कोई पैसा नहीं दिया गया है।
सरकार का कहना था, एक गांव को आदर्श बनाने के लिए कई काम बिना पैसों के भी हो सकते हैं। लेकिन आंकड़ों से साफ़ है कि सरकार की नसीहत को उसके अपने ही सांसद अनसुना कर रहे हैं। इससे बात से चिंतित सरकार अब हरकत में आई है, योजना में सुधार लगातार प्रयास किया जा रहा है। बिजली, पानी या सिंचाई से जुड़ी तमाम योजनाओं में आदर्श गांव योजना के तहत चुने गए गांवों को तरजीह दी जाएगी।