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Wednesday, January 15, 2025

बीजेपी के 5 चक्रव्यूह, जिसकी वजह से अब महज 4 राज्यों तक सिमटी कांग्रेस

​नई दिल्ली। गुजरात विधानसभा चुनाव के नतीजे आ चुके हैं। कांग्रेस जहां हार कर भी पिछली बार से अधिक मजबूत होने पर संतोष कर रही है, तो बीजेपी जीतने के बाद भी पिछली बार से कमजोर नजर आ रही है। वोट शेयर में अतंर बेशक सिर्फ 8 फीसदी का है लेकिन अगर सीटों की बात करें तो बीजेपी को पिछली बार से 16 सीटों का नुकसान हुआ है, और बीजेपी का यही नुकसान कांग्रेस के लिए फायदेमंद साबित हुआ है। 

पांच कारण जिनका गुजरात चुनाव पर रहा असर

1. ब्रांड वैल्यू


नरेंद्र मोदी: भाजपा का ब्रांड वैल्यू प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कारण काफी ऊपर है। उनकी नेतृत्व क्षमता, जनता की नब्ज पर पकड़, प्रभावी संवाद क्षमता और विश्वसनीयता का मुकाबला फिलहाल किसी से नहीं है। गुजरात में भाजपा की जीत को ब्रांड मोदी की जीत कहना ज्यादा उचित होगा। एकबार फिर यह साबित हुआ कि मोदी अकेले दम पर पार्टी को जिता सकते हैं।

राहुल गांधी: कांग्रेस के नवनिर्वाचित अध्यक्ष राहुल गांधी का ब्रांड वैल्यू पहली बार गुजरात चुनाव में बढ़ता हुआ नजर आया है। इससे पहले उन्हें नेतृत्व क्षमता, संवाद कुशलता, देश की समझ और परिपक्वता के मामले में काफी कमजोर माना जाता था। गुजरात में हालांकि राहुल अपनी कमजोरियों पर काबू पाते हुए दिखे, लेकिन उनका ब्रांड वैल्यू बेहतर होने के बावजूद कांग्रेस को उम्मीद के अनुरूप लाभ दिलाने में विफल रहा।
2. संगठन

भाजपा: भाजपा पिछले 22 साल से वहां शासन कर रही है, इसलिए हर तरह से सक्षम है। पार्टी संगठन के अतिरिक्त आरएसएस और इसके सहयोगी संगठनों का एक बड़ा कैडर आधार है। भाजपा अध्यक्ष अमित शाह की संगठन पर जबरदस्त पकड़ है। बूथ मैनेजमेंट में उन्हें महारत हासिल है। पार्टी से नाराजगी को उन्होंने समय रहते भांप लिया और उसे दूर करने में एड़ी-चोटी का जोर लगा 

कांग्रेस: लंबे समय से सत्ता से दूर रहने के कारण कांग्रेस संगठन कमजोर हुआ है। चुनाव से ठीक पहले शंकरसिंह वाघेला जैसे दिक्कज नेताओं का किनारे लग जाना भले ही अन्य मामलों में पार्टी के लिए फायदेमंद रहा हो पर संगठन का ढांचा इससे जरूर चरमराया। वैसे भी कांग्रेस को संगठन से ज्यादा परस्थितियों पर यकीन करने की आदत है जो इसबार उसे अपने अनुकूल लग रही थी। हालांकि यह काम नहीं आया।

3. विचारधारा
कट्टर हिंदुत्व: भाजपा की कट्टर हिंदुवादी विचारधारा से गुजरात के बहुसंख्यक समुदाय को कोई शिकायत नहीं है। सरकार के फैसलों से नाराजगी के बावजूद विचारधारा के स्तर पर मतदाताओं का भाजपा से पहले जैसा ही जुड़ाव बना रहा है। भाजपा यह जानती थी इसलिए उसने सही समय पर पाकिस्तान की एंट्री कराकर लाभ लेने का कोई मौका नहीं गंवाया। अहमद पटेल का नाम कांग्रेस के संभावित मुख्यमंत्री के रूप में उछालना इसी रणनीति का हिस्सा था।

उदार हिंदुत्व: यूपीए शासन में कांग्रेस ने धर्मनिरपेक्ष राजनीति का नेतृत्व करने के चक्कर में उदार हिंदुत्व की अपनी पुरानी छवि को तिलांजलि दे दी थी, जिसका भाजपा ने भरपुर फायदा उठाय़ा था। इसबार अपनी रणनीति बदलते हुए कांग्रेस ने गुजरात में उदार हिंदुत्व का अपना पुराना चुनावी चेहरा ओढऩा चाहा। हालांकि, राहुल के मंदिर-मंदिर घूमने और उनके धर्म को लेकर सवाल खड़ा करते हुए भाजपा ने कांग्रेस की इस मंशा को पूरा नहीं होने दिया।

4. बेहतर सरकार
NDA सरकार: मोदी के नेतृत्व में चल रही केंद्र सरकार हो या उनकी छाया मेें चल रही रुपाणी की राज्य सरकार, जनता को इनसे वैसी नाराजगी नहीं थी कि वह सत्ता परिवर्तन के विकल्प को आजमाने की कोशिश करे। नोटबंदी, जीएसटी को लेकर कुछ नाराजगी जरूर दिखी थी पर उसके समाधान के लिए किसी अन्य सरकार पर भरोसा करने का जोखिम उठाना मतदाताओं ने जरूरी नहीं समझा। यह सेंटिमेंट भाजपा के पक्ष में गया।

UPA सरकार: जनता ने कांग्रेस के नेतृत्ववाली यूपीए सरकार को भी करीब से देखा है। यह समझना किसी के लिए भी मुश्किल नहीं की कि दोनों सरकारों की आर्थिक नीतियां कमोवेश एक ही है। बल्कि, यह कहना ज्यादा मुफीद होगा कि उद्योग और व्यापार जगत की भावनाओं की रक्षा कांग्रेस के मुकाबले भाजपा की सरकार ज्यादा बेहतर तरीके से कर सकती है। राहुल ने औद्योगिक घरानों को चुनाव प्रचार में निशाना बनाकर इसे और स्पष्ट कर दिया था।
5. गुजराती अस्मिता
गुजरात ही विकास: भाजपा ने हमेशा गुजराती अस्मिता के मुद्दे को ज्यादा तवज्जो दिया है। गुजरात के विकास को पिछले लोकसभा चुनाव में देश के लिए एक मॉडल बनाकर पेश किया था। विकास के इस मॉडल से गुजरात को फायदा हुआ या नुकसान, बिना व्यापक विश्लेषण के, ‘विकास पालग हो गया’ जैसे जुमले को कांग्रेस द्वारा उछालना, भाजपा के लिए गुजराती अस्मिता को हवा देने का एक मौका दे गया।

विकास पागल नहीं हुआ: विकास का प्रतीक-राज्य बन गए गुजरात ने कांग्रेस की इस हरकत को पसंद नहीं किया जिसमें उसने विकास का मजाक उड़ाया गया था। खासकर ऐसी स्थिति में जब कांग्रेस के पास भी विकास का कोई वैकल्पिक मॉडल नहीं है। दरअसल गुजरात के विकास का मॉडल तो कांग्रेस के लंबे शासन के विकास का भी प्रतीक है। ऐसे में मतदाताओं को यह बात हजम नहीं हुई।

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