दीपक ठाकुर-NOI।
देश मे जब से भाजपा की सराकर आई तभी से महिला शक्तिकरण पर ऐसा ज़ोर दिया जाने लगा जैसे मानो ये सरकार वाकई महिलाओ और बच्चियों को लेकर संवेदनशील है मगर जैसे जैसे समय गुज़रा तब ये एहसास होने लगा कि इस सरकार ने भी महिलाओ और बच्चियों को सिर्फ नारे में ही सशक्त किया है इसका ज़मीनी तौर पर कोई पुरसाहाल लेने वाला नही।
हम ऐसा कहने को इसलिए मजबूर हुए क्योंकि हमारे पास उन बहुत सी बच्चियों के अभिभावक आये जो कहते हैं कि सरकार कहती है कि बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ पर महंगाई के इस दौर में बच्चियों को बेहतर शिक्षा दी जाए तो कैसे?प्राइवेट स्कूल में एक आम आदमी अपनी बेटी को पढ़ाने का सिर्फ ख्वाब ही देख सकता है क्योंकि प्राइवेट स्कूल में बच्चियों की फीस में कोई मरौवत नही की जाती।
आप किसी भी निजी स्कूल में अपनी बच्ची का दाखिला कराने जाएंगे तो पहले आपको स्कूल की तरफ से ऐसा कागज़ थमाया जाएगा जिसको पढ़ते ही आपके होश फाख्ता हो जाएंगे।उस कागज़ में बच्ची के दाखिले से साल भर की पढ़ाई का जो लिखा जोखा होता है वो आम आदमी की आमदनी के तिगुना होता है अब ऐसे में किसी तरह दाखिला करा लेने के बाद साल भर का पढाई का खर्चा कैसे निकला जाए यही सोच के अभिभावक परेशान रहते हैं पर निजी स्कूल उनकी एक नही सुनता सरकार भले कोई भी राग अलापती रहे।
हम किसी एक स्कूल की बात नही कर रहे है यहां हर निजी स्कूल बच्चियों की पढ़ाई को लेकर ज़रा भी दिलेरी नही दिखाता उसे सिर्फ पैसा चाहिए वो अभिभावक जैसे भी लाएं।और तो और तीन महीने की फीस इकट्ठा लेना भी इन निजी स्कूलों के एजेंडे का एक हिस्सा बन गया है जो अभिभको के लिए किसी सिरदर्द से कम नही होता। पहले तो दाखिले के वक़्त मोटी रकम की व्यवस्था करना फिर हर तीन महीने में उसी बराबर पैसा स्कूल में जमा कराना हर आम आदमी के बस की बात नही होती तो ऐसे में सरकार ही बताए कि बेटी को बचाना तो अभिभावक के हाथ मे है पर उसे बेहतर शिक्षा दिलवाने में आप कोई रुचि क्यों नही दिखाते क्यों सिर्फ नारो में ही उदारता दिखाई जाती है इन निजी स्कूलों पर नकेल कसने में आप क्यों संकोच करते हैं क्या यहां भी कोई आपका हित तो नही अगर है तो ठीक है जैसा चल रहा है चलने दें लोग भी समझ लेंगे नारे हैं नारों का क्या पर अगर नही तो कृपया करके कोई आदेश पारित करें जिससे बेटियां अच्छी शिक्षा कम पैसे में ग्रहण कर सके।