शरद मिश्रा”शरद”/श्रवण सिंह
लखीमपुर खीरी:NOI- भारत देश में किसान को भगवान कहा जाता हैं।और फिर भी उसे दीनहीन दया का पात्र माना जाता हैं,हम उन किसानों की बात करते हैं जो छोटे एवं मध्यम वर्ग से जुड़े होते हैं और सिर्फ अनाज सब्जी दाल की मिलवा खेती करते हैं। जो भगवान के सहारे पैदा होकर किसान के घर पहुंचती है।कभी -कभी लागत आ जाती कभी-कभी पूंजी भी चली जाती हैं।और किसान खेती होने के बावजूद भिखमंगे की श्रेणी में आ जाता हैं।खेती के सहारे पशु,पक्षी,जीव ,जंतु तक जिन्दा रहते हैं।और किसान की कमाई के बल पर वह सब भी अपना पेट भरते हैं। किसान की पहचान पशुओं को पालने में भी की जाती हैं।और ऐसा किसान नहीं मिलेगा जिसके पास एक भी पशु न हो क्योंकि पशु गृहस्थी का मुख्य आधार माना जाता है। कहावत भी है कि-” या धन बाढै नदी के काछा या धन बाढ़ै गऊ के बाछा”।रबी की खेती किसान के लिए सबसे अधिक परेशानी में डालती हैं। क्योंकि इसकी पत्तियां कड़ी नहीं बल्कि मुलायम होती हैं।यही कारण कि जंगली और आवारा पशु इसे बड़े चाव से देशी घी पड़े खाने की तरह खाते हैं। इधर कुछ महिनों से खेती करना बहुत मुश्किल हो गया हैं।किसान जंगली और आवारा पशुओं से तंग आ गया है।अगर यहीं हाल रहा तो किसान खेती करना बंद कर देगा।और उसने इस दिशा में खेती बेचना शुरू भी कर दिया है।लोग खेती छोड़कर भागने लगे नौकरी रोजगार को महत्व देने लगे हैं।जबकि खेती सर्वोत्तम माना गया है और कहा भी गया है कि-” उत्तम खेती मध्यम बान निषद चाकरी भीख समान”।इधर अब तक नीलगाय किसानों के लिए दुश्मन बनी थी लेकिन अब उसकी आफत आवारा गोवंशीय बछड़े,सांड बन गये हैं।जो खेती किसानी के ही नही बल्कि जिंदगी के भी महा दुश्मन बन गये हैं।इस कड़ाके की सर्दी में जबकि घर से बाहर निकलना दुश्वार है।ऐसे में रात दिन खेत में बैठकर गेहूँ, सरसों की फसलों की रखवाली कर पाना संभव नहीं है।इधर चाहे धान,उरद आदि की फसल हो चाहे गेहूं चना मटर सरसों आदि की हो फसल तैयार करके घर लाना आसान नहीं रह गया है। जबसे सरकार ने पशुपालन को बढ़ावा देने के लिये डेरी योजना कर दी हैं।तबसे गोशालाओं व भैंसशालाओकी बाढ़ सी आ गयी है।सरकारी अनुदान से या व्यक्तिगत चलने वाली गोपालन और दूधारू पशुपालन का योजनाओं में प्रतिफल हैं।कि दूध की क्रांति आ गई हैं।अधिकांश गोशालाओं को अगर देखा जाये।तो उसमें बछड़े जल्दी नहीं मिलेंगे।कुल मिलाकर किसानों के लिये यह आवारा पशु एक विकराल समस्या का रुप बन गये हैं।किसान रात में घर की रखवाली इस जाड़े में करे कि खेत की करें।कुछ समझ में नही आ रहा है। किसान ही एक ऐसा होता है जो कि सबका हमला झेलने के बाद भी -” पुनि पुनि करौ तौ उतरौ पार ” वाले सिद्धांत पर जिंदा रहता है।इस समय किसान की खेती खतरे में पड़ गयी हैं,और भविष्य अंधकार मय होता जा रहा हैं।