भारत में आज दो राष्ट्रीय पार्टियां न सिर्फ केंद्र सरकार में हाबी है बल्कि इनकी पहुंच राज्य सरकार में भी बढ़ती जा रही है. इन पार्टियों से राज्य स्तर की पार्टियों का टक्कर लेना, किसी बड़े पहाड़ के नीचे खड़े होकर देखने से कम नहीं है.
ऐसे में अब कई राज्य स्तर और केंद्र स्तर की पार्टियां एक जुटता के लिए कमर कस ली है. और बीजेपी को हारने का संकल्प ली है. लेकिन इसी बीच सरकार के प्रधानमंत्री पद को लेकर टकराव को भी देखने को मिला है.
भारत में मायावती की शासन व्यवस्था को कमजोर नहीं कहा जा सकता है. क्योकि इन्होने इसके पहले उत्तर प्रदेश की गद्दी पर रहकर जिस तरह से राज्य को सुसज्जित और सुव्यवस्थित तरीके से चलाने का प्रयाश किया है. वो कबीले तारीफ है. मायावती जब सत्ता से बाहर हुई तो मिडिया में बोली थी मुझे जनता ने भले ही पसंद नहीं किया. लेकिन मेरे जाने के बाद बसपा का शासन जरूर याद करेगी. और आज हुआ भी वही.
अगर राजनैतिक चाल ऐसी ही चलती रही तो एक दिन बसपा को नम्बर १ पार्टी से बनने से कोई नहीं रोक सकता है.