बीजेपी को हर चुनाव में लगातार मिल रही जीत से विपक्ष बिल्कुल परेशान है। विपक्षी दल ये स्वीकार भले ही न करें, लेकिन मोदी-शाह की करिश्माई जोड़ी उनके अस्तित्व पर सवाल उठाने लगी है। और यह डर ही है जिसकी वजह से देश में वे राजनीतिक परिदृश्य बन रहे हैं। जिनकी कभी कल्पना भी नहीं की जा सकती थी। लालू-नीतीश का साथ आना किसी करिश्में से कम नहीं था। लगभग पन्द्रह साल से एक दूसरे के विरोधी रहे लालू-नीतीश ने आपस में हाथ मिला लिया जिसका परिणाम ये हुआ कि जीतने वाली भाजपा अचानक से बिहार में ध्वस्त हो गयी।
बिहार का गठबंधन पूरी तरह लालू के दिमाग की उपज थी। अब अपने ऊपर पड़ रहे छापों से तिलमिलाए लालू ने बीजेपी को सबक सिखाने की चुनौती दी है। वे ये सबक 2019 के लोकसभा चुनाव में सभी पार्टियों का महागठबंधन बनाकर सिखाएंगे। खबर है कि लालू आगामी 27 अगस्त को पटना के गांधी मैदान में एक महारैली का आयोजन करेंगे। इस रैली में सभी गैर भाजपाई दलों को आमंत्रित किया गया है।
समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव और बहुजन समाज पार्टी की अध्यक्ष मायावती ने इस रैली में आने की अनुमति दे दी है। यानी इन दोनों कट्टर विरोधियों के साथ आने की शुरुआत पटना से हो जाएगी। इस महागठबंधन की पटकथा एक बार फिर लालू के ही हाथ रहने वाली है।
दरअसल पिछले दिनों सम्पन्न हुए यूपी के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने अकेले दम पर 42 फीसद से अधिक मत हासिल किया था। वहीं सपा-बसपा बीस-बाइस फीसद के आस-पास ही अटक कर रह गयी थी। अगर इन दोनों पार्टियों के मत एक साथ लाने में कामयाबी मिल जाती है तो यह बीजेपी के लिए निश्चय ही एक चिंता की बात होगी।
हालांकि भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने कल चंडीगढ़ में यह कहा कि वे पिछली बार से भी अधिक ताकत के साथ जीतकर सत्ता में वापसी करने में कामयाब रहेंगे। लेकिन उन्हीं की पार्टी के एक राष्ट्रीय प्रवक्ता ने यह स्वीकार किया कि अगर सच मे 1975-77 के दौर की तरह सभी दल बीजेपी के खिलाफ खड़े हो जाते हैं तो पार्टी के लिए ये एक मुश्किल की घड़ी होगी। भाजपा की उम्मीदें सिर्फ इस बात पर टिकी हैं कि इतने अधिक दलों का आपस मे सामंजस्य बनना आसान नहीं होगा, और अगर ऐसा गठबंधन अस्तित्व में आ भी गया तो उसका टिकना मुश्किल है।