विवार को रोम की वेटिकन सिटी में मदर टेरेसा को संत की उपाधि से नवाजा गया। वेटिकन सिटी में एक कार्यक्रम में पोप फ्रांसिस ने इसका ऐलान किया। कार्यक्रम में विदेश मंत्री सुषमा स्वराज, दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल और पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी मौजूद थीं।
– पोप फ्रांसिस ने मार्च में ऐलान किया था मदर टेरेसा को संत की उपाधि दी जाएगी।
-मदर टेरेसा को नोबेल शांति पुरस्कार और पद्म श्री (1962) समेत विश्व भर के अन्य कई बड़े पुरस्कारों से नवाजा जा चुका है। 1964 में भारत दौरे के दौरान पोप पॉल पंचम ने अपनी गाड़ी उन्हें भेंट की थी, लेकिन मदर टेरेसा अपने जीवन को पूरी तरह से जरूरतमंदों की सेवा के लिए समर्पित कर चुकी थीं।
– उन्होंने इस उपहार को बेचकर पैसे इकट्ठा किए और उसे कुष्ठ पीड़ितों के लिए दान कर दिया।महज 12 साल की उम्र में ही मदर टेरेसा ने इस बात का निश्चय कर लिया था कि वह धार्मिक सेवा से जुड़ेंगी।
– मदर टेरेसा ने 18 साल की उम्र में ही घर छोड़ दिया था और नन बनने के लिए डबलिन की दो सिस्टर्स के सानिध्य में चली गई थीं। टेरेसा इसके बाद कभी भी अपने परिवार के पास वापस लौटकर नहीं गईं।मदर टेरेसा ने भारत की नागरिकता ली थी।
– सिस्टर टेरेसा कोलकाता के सेंट मैरी हाई स्कूल में इतिहास और भूगोल विषय पढ़ाती थीं। वहां पर उन्होंने तकरीबन 15 साल तक काम किया। वह अपने काम से खुश थीं, लेकिन आस-पास दिखने वाली गरीबी से वह बेहद आहत रहती थीं।
– अध्यापन छोड़कर बीमार और गरीब लोगों की सेवा से जुड़ने का ख्याल उनके दिमाग में तब आया, जब वह एक कार्यक्रम में हिस्सा लेने कोलकाता से हिमालय की ओर जा रही थीं। दरअसल इस यात्रा के दौरान उन्हें यह महसूस हुआ कि क्राइस्ट उन्हें जरूरतमंदों की सेवा से जुड़ने का संकेत दे रहे हैं।80 के दशक में लेबनान के बेरूत के एक हिस्से में क्रिस्चन समुदाय और एक में मुस्लिम समुदाय का वर्चस्व था।
– इस दौरान ही 1982 में मदर टेरेसा गुप्त रूप से बेरूत चली गई थीं, ताकि वह इस क्षेत्र के बदहाल बच्चों की सेवा कर सकें।अपने मिशन के दौरान मदर टेरेसा को समकालीन बुद्धिजीवियों की आलोचना का भी काफी सामना करना पड़ा। ब्रिटिश लेखक क्रिस्टोफर हिचेन्स और ऑस्ट्रेलियन फेमिनिस्ट जर्मेन ग्रीर ने मदर टेरेसा की जमकर आलोचना की थी। लेकिन दूसरी तरफ पूरे विश्व ने उनके सेवा कार्यों को समझा और सराहा भी।