सीतापुर-अनूप पाण्डेय,अमरेंद्र पाण्डेय/NOI-उत्तरप्रदेश /साथियों,
इस समय मनुष्य सुविधा के लिए मौत को गले लगाने में संकोच नहीं किया रहा है सबसे बड़ी बात तो यह है कि लोग जानते हुए भी अनजान बने हुए हैं। इधर पानी का संकट बढ़ रहा है और कुछ जिलों के लोग बूंद बूंद पानी के लिए तरस रहे हैं इसके बावजूद पानी का दोहन एवं बरबादी रूक नहीं पा रही है। बीड़ी सिगरेट तम्बाकू गुटखा शराब आइसक्रीम आदि को जानलेवा जानते हुये भी लोग उसका इस्तेमाल करने में संकोच नहीं कर रहे हैं।सरकार पिछले दिनों तम्बाकू युक्त पान गुटखे पर रोक लगा चुकी है फिर भी गुटखा आज भी मोहल्ला गाँव गली कूचे तक धड़ल्ले से बिक रहा है, फर्क इतना हुआ है कि पहले तम्बाकू मिली होती थी लेकिन अब वह अलग से बिकती है। मतलब सरकार के प्रतिबंध का कोई फायदा नहीं हुआ और कैंसर से लेकर उदर रोग को पैदा करने वाला गुटखा आज भी धड़ल्ले से मिल रहा है।एक समय था जबकि लोग बाजार मेला आदि जाते थे तो झोला साथ में लेकर जाते थे और जो झोला लेकर नहीं जाता था उसे अपने गमछे में बाँधकर सामान लाना पड़ता था। इधर कुछ दशकों से झोला गमछा लेकर बाजार हाट जाना दिहाती गंवार पिछड़े का प्रतीक मान लिया गया है और अधिकांश लोग प्लास्टिक की पन्नी या पोलीथीन बैग के सहारे बाजार मेला जाने लगे है। प्लास्टिक पोलीथीन जैसे मनुष्य की आम जिन्दगी का एक हिस्सा बनकर उसमें रचबस गयी है और चाय पानी खाना तक इसमे पैक किया जाने लगा है। सभी जानते हैं कि पोलीथीन में खाना एवं चाय रखने से उसमें लगा कैमिकल उसमें घुल मिलकर खाने को विषाक्त बना देता है और पोलीथीन मनुष्य की जिन्दगी में मीठे जहर का काम करती हैं और इससे तरह की बीमारियों के फैलने की आशंका बनी रहती है। इतना ही नहीं प्लास्टिक से निर्मित यह पोलीथीन इस समय हर छोटी बड़ी हर चींज की दूकानों पर उपलब्ध है और दूकानों पर जो भी समान दिया जाता है वह इन्हीं पोलीथीन की पन्नियों या बैग में देने का जैसे रिवाज हो गया है। यह पोलीथीन बैग के इस्तेमाल से मनुष्य के स्वास्थ्य पर ही विपरीत प्रभाव नहीं डाल रहे हैं बल्कि जल संकट एवं पर्यावरण प्रदूषण में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। इन सारे पोलीथीन के बैगों को इस्तेमाल करने के बाद फेंक दिया जाता है जो जमीन के अंदर जाकर जमकर एक सतह बना देती हैं जिसके कारण ऊपर का बरसाती या अन्य पानी नीचे तक नहीं पहुंच पाता है जिसका सीधा असर जलस्तर पर पड़ रहा है। सुविधा के नाम पर सबकुछ जानते हुए भी मनुष्य अंधा अनजान बना कालीदास की तरह जिस डाल पर बैठा है उसी को अपने हाथ काट रहा है।पोलीथीन का इस्तेमाल अपने हाथों अपने पैर कुल्हाड़ी मारने और खुद अपनी मौत बुलाने जैसा है इसीलिए इस पर रोक लगाने की माँग एक लम्बे अरसे से की जा रही है। अभी पिछले दिनों इस पर सरकार द्वारा प्रतिबंध लगाया गया था लेकिन सफल नहीं हो सका था। इस बार फिर योगीजी की सरकार ने पालीथीन, प्लास्टिक और थर्मोकोल पर प्रतिबंध लगाकर इसे पूरी तरह बंद करने का जैसे मन बना लिया है। सरकार ने इस कठिन कार्य को आसान बनाने के लिए जनसहयोग लेने की योजना बनाई है और उसके लिए 26 करोड़ रुपये का बजट भी दे दिया गया है। पोलीथीन आदि पर रोक कल से लग गयी है और कल से ही अभियान चलाकर 50 माइक्रोन तक की पोलीथीन को प्रतिबंधित करने का काम शुरू हो गया है। अभियान शुरू होना या औपचारिकता निभाने के लिए क्षणिक कार्यवाही या देखभाल से पालीथीन पर प्रतिबंध लगा देने मात्र से कुछ नही होने वाला है। पिछली बार की तरह आमजन की सुविधा के नाम पर ढील देने से काम नही चलने वाला है बल्कि जिस से चींज मानव जीवन खतरे में पड़ रहा हो उसे आँख मूँदकर बंद करवा देना जनहित में जरूरी है। इसके लिये जनता को जागरूक होना पड़ेगा लेकिन वह इतने दिनों से उसका इस्तेमाल करते करते अभ्यस्त सा हो गयी है और ग्राहक ही दूकानदार को थैली यानी पन्नी यान पोलीथीन बैग देने पर विवश करता है। जनता को जागरूक करने के लिए जो धनराशि आवंटित की गई है अगर उसका ढंग और विवेक से इस्तेमाल किया जाय तो फिलहाल शुरूआती चरण में इतनी धनराशि कम नहीं है। सरकार का सख्ती से पोलीथीन आदि पर रोक लगाना एक सराहनीय स्वागतयोग्य कदम बशर्ते इसे लागू कराने में बेइमानी न की जाय। इसमें दो राय नहीं है कि प्रशासन अगर चाह ले तो चौबीस घंटे के अंदर पोलीथीन बाजार से गायब हो सकती है। अचानक प्रतिबंध लगने से इस धंधे में लगे लोग बेरोजगार हो जायेगें इन्हें बेरोजगार होने से बचाना सरकार का दायित्व बनता है। इस अभियान पर लगातार निगाह रखने की जरूरत है वरना कुछ जिम्मेदार लोग इस अभियान को भी चंद स्वार्थवश कलंकित करके बाधित कर सकते हैं।