नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो। रेलवे घूसकांड की जांच की आंच ममता बनर्जी के कार्यकाल तक पहुंच गई है। सीबीआइ ने पवन बंसल से पहले मुकुल राय, दिनेश त्रिवेदी और ममता बनर्जी के कार्यकाल में रेलवे के वरिष्ठ अफसरों की ट्रांसफर-पोस्टिंग से लेकर बड़े खरीद सौदों तक की फाइलें टटोलनी शुरू कर दी हैं।
पढ़ें: ममता ने कहा, हिम्मत हो तो छू कर दिखाए केंद्र
रेलवे घूसकांड की जांच के क्रम में तृणमूल सांसदों के रेल मंत्री रहते हुए ट्रांसफर-पोस्टिंग के मामलों की पड़ताल शुरू होने पर ममता बनर्जी ने शुक्रवार को संप्रग सरकार पर हमला बोला। कहा, यदि केंद्र में हिम्मत है तो उन्हें छूकर दिखाए। उन्होंने आरोप लगाया कि केंद्रीय एजेंसियों का इस्तेमाल कर संप्रग सरकार उनकी पार्टी व सरकार को अस्थिर करना चाहती है। ममता ने कहा, ‘कोयला घोटाले के हीरो हमारे खिलाफ साजिश रच रहे हैं। इसमें कांग्रेस के साथ माकपा मिली हुई है।
जब तृणमूल संप्रग सरकार में थी तब पार्टी पर इनकम टैक्स छापे की साजिश रची गई थी। पार्टी सांसदों की फाइलें मंगाई गई थीं। उस वक्त मैंने प्रधानमंत्री से कहा था कि वह जो चाहे कर सकते हैं।’ तृणमूल सुप्रीमो शुक्रवार को कोलकाता में एक रैली संबोधित कर रही थीं। बोलीं, ‘केंद्र ने कहा था कि उसने मुलायम, मायावती व जयललिता को छूआ, लेकिन ममता को नहीं छू पाई। केंद्र मेरा नाम भ्रष्टाचार में लाकर दिखाए। मेरा बाल छूकर दिखाए। मैं अपना सिर नहीं झुकाऊंगी। मैं राजा और रानी से कहती हूं कि वे आग से न खेलें। मैं गरीब परिवार से हूं किसी शाही परिवार से नहीं।’
सूत्रों के मुताबिक बंसल के रेलमंत्री रहते पहली बार रेलवे बोर्ड के मेंबर की नियुक्ति में घूसखोरी की बात सामने आई है। इसकी जांच व पूछताछ में सीबीआइ को कई ऐसे तथ्य पता चले हैं जिनसे साबित होता है कि बंसल से पहले भी रेलवे बोर्ड में चेयरमैन व मेंबर के अलावा जोन व मंडलों में जीएम व डीआरएम बनाने में नियमों की अनदेखी की जाती रही है। इसी के बाद सीबीआइ ने इन मामलों से जुड़ी पिछले तीन साल की फाइलें मांग ली हैं।
पिछले तीन साल में जिन अहम मामलों में गड़बड़ी का संदेह है उनमें ममता बनर्जी के समय में चेयरमैन की नियुक्ति अहम है। तब विवेक सहाय को पहले मेंबर ट्रैफिक बनाया गया और फिर चेयरमैन। परंतु चेयरमैन बनने के बावजूद उनसे मेंबर ट्रैफिक का कार्यभार नहीं लिया गया। एक साल बाद उनके रिटायर होने पर ही चेयरमैन और मेंबर ट्रैफिक पद पर अलग-अलग व्यक्तियों की नियुक्ति हुई। यही नहीं, सीवीसी की ओर से सवालों के बावजूद सहाय को चेयरमैन बनाया गया था।
इस दौरान हुईं तीन-चार मेंबर और महाप्रबंधकों की नियुक्तियां भी सवालों के घेरे में हैं। इतना ही नहीं, कई जीएम व डीआरएम पदों पर नए अधिकारियों को लंबे अर्से तक प्रमोट नहीं किया गया। अंतत: दिनेश त्रिवेदी के कार्यकाल में तीन जीएम व 26 डीआरएम की नियुक्ति को हरी झंडी दी गई। रेल भवन के सूत्रों के मुताबिक पिछले वर्षो में हुए टेंडर और खरीदारियों पर भी सीबीआइ की निगाह है। इनमें ट्रेनों की टक्कर रोकने की प्रणाली टीपीडब्ल्यूएस (ट्रेन प्रोटेक्शन एंड वार्निग सिस्टम) की जोनल स्तर पर खरीद के पहले टेंडर व आपूर्ति के ठेके दिया जाना और फिर कुछ समय बाद इसे रद कर इसकी जगह पर नई प्रणाली टीसीएएस (ट्रेन कोलीज़न अवाइडेंस सिस्टम) की खरीद की प्रक्त्रिया शुरू करना शामिल है।
यही नहीं, सुरक्षा के नाम पर तमाम स्टेशनों में इंटीग्रेटेड सिक्यूरिटी सिस्टम लागू करने के लिए उपकरणों की खरीद की फाइलें भी देखी जा सकती हैं। इसी तरह मुकुल राय के समय करोड़ों रुपये के स्क्रेप खरीद के टेंडरों को लेकर भी संदेह जताया जा रहा है। जहां तक बंसल के समय में गड़बड़ियों की बात है तो महेश कुमार के प्रमोशन मामले के अलावा मुंबई एलीवेटेड कारीडोर परियोजना बढ़ाने की जल्दी को लेकर भी सवाल उठ रहे हैं। बंसल शुरू से ही 60 हजार करोड़ रुपये की इस परियोजना में रुचि लेते रहे हैं।