कोलकाता। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री को कलकत्ता विश्वविद्यालय डॉक्टर ऑफ लिटरेचर (डी-लिट) की मानद उपाधि देगा या नहीं इसका फैसला आज कलकत्ता हाईकोर्ट में होगा। कलकत्ता यूनिवर्सिटी की ओर से 11 जनवरी को बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को डी-लिट की मानद उपाधि देने की घोषणा की गई थी। ममता को डिलीट की उपाधि दिए जाने के विश्वविद्यालय के इस फैसले के खिलाफ कलकत्ता हाई कोर्ट में दो लोगों ने जनहित याचिका दायर कर दी थी।
यूनिवर्सिटी की घोषणा के बाद नॉर्थ बंगाल विवि के पूर्व उपकुलपति रंजूगोपाल मुखोपाध्याय ने याचिका में कहा था कि, ममता बनर्जी इस उपाधि के लिए अयोग्य हैं। याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया है कि चूंकि कलकत्ता विश्वविद्यालय राज्य द्वारा वित्त पोषित संस्थान है इसलिए अगर वह राज्य की उच्चतम कार्यकारी प्राधिकरण को डिग्री प्रदान करती है तो इससे उसकी विश्वसनीयता को नुकसान पहुंचेगा।
वहीं विवि ने अपना पक्ष रखते हुए कहा कि, यह याचिका ‘राजनीतिक रूप से प्रेरित’ और ‘प्रचार’ के लिए है। इससे पहले विवि बंगाल के पूर्व मुख्यमंत्रियों ज्योति बसु और डाक्टर बीसी रॉय को इस तरह की उपाधि दे चुका है। इस पर याचिकाकर्ता ने कहा कि ज्योति बसु और डॉक्टर रॉय को उपाधि उस समय दी गईं जब वे मुख्यमंत्री नहीं थे। अदालत ने बुधवार को कहा कि वह दीक्षांत समारोह में हस्तक्षेप नहीं करेगा। मामले में सुनवाई आज जारी रहेगी।
आपको बता दे कि कलकत्ता विश्वविद्यालय की स्थापना 24 जनवरी, 1857 को हुई थी। पूरे देश व दुनिया में इस प्राचीन विश्वविद्यालय की अपनी एक अलग पहचान है। स्वामी विवेकानंद से लेकर महान वैज्ञानिक सत्येंद्रनाथ बोस, राष्ट्रीय गीत वंदे मातरम् के रचयिता बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय जैसी हस्तियां इसके छात्र रहे हैं।