बागपत [प्रदीप राघव]। मां की आंख का तारा, मां जैसा दिल, मां के जिगर का टुकड़ा, मां का आंचल आदि बिंब बोलचाल में खूब इस्तेमाल किए जाते हैं, लेकिन मां जैसा गुर्दा आमतौर पर सुनने को नहीं मिलता। बागपत जिले की चंद्रवती ने जिगर के टुकड़े को अपना गुर्दा देकर इस कहावत को जन्म दे दिया है कि ‘किसी के पास नहीं मां जैसा गुर्दा’।
बागपत की ढिकौली निवासी रामवीर सिंह ढाका की 60 वर्षीय पत्नी श्रीमती चंद्रवती ने बड़े बेटे की जिंदगी को मझधार में फंसा देखा तो अपनी जिंदगी भूलकर बेटे को अपना गुर्दा देने का निर्णय लिया।
दरअसल, चंद्रवती के बड़े पुत्र प्रदीप ढाका के दोनों गुर्दे खराब हो गए थे। घर के सभी सदस्य बेहद परेशान हो गए थे। चिकित्सकों ने गुर्दा बदलना ही कारगर तरीका बताया। उन्हें पिता, मां, भाई और पत्नी अपना गुर्दा देने को तैयार थे, लेकिन मां के संकल्प और स्नेह के आगे सब पीछे हो गए। यह भी संयोग ही था कि मां का ब्लड ग्रुप मिला और उन्होंने अपना गुर्दा दिया। 2008 में सर गंगाराम अस्पताल में उनकी किडनी ट्रांसप्लांट हुई। इस मां ने बेटे के साथ पूरे परिवार को नया जीवन दे दिया। मां और बेटा दोनों स्वस्थ्य हैं। ‘दैनिक जागरण’ से बातचीत में चंद्रवती ने बताया कि 22 वर्ष की आयु में उन्होंने पहले जवान बेटे पुनीत को खो दिया था और अब इस जवान बेटे पर आफत आ गई थी। वह मां के साथ मुखिया की भूमिका में आ गई थीं। हालांकि उनके माता-पिता गांव में रहना अधिक पंसद करते हैं।
जग में मां से बड़ा कोई ओहदा नहीं
सम्राट पृथ्वीराज चौहान डिग्री कालेज में फिजीकल एजुकेशन के प्रवक्ता प्रदीप ढाका का कहना है कि दुनिया में मां से बड़ा कोई ओहदा नहीं है। उन्होंने कोख से जनम तो दिया ही है, उन्हें दूसरा जीवन भी दिया है। वह शत-शत बार भी जन्म लेकर भी मां के कर्ज को नहीं अदा कर सकते।