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Wednesday, January 15, 2025

माया की राजनीति का टर्निंग पॉइंट होंगे नतीजे



लखनऊ।चार बार यूपी की सत्ता हासिल कर चुकी बीएसपी के लिए यह चुनाव टर्निंग पॉइंट होगा। चुनाव की अहमियत को समझते हुए सपा, कांग्रेस और बीजेपी ने इस चुनाव में गठबंधन का सहारा लिया लेकिन बीएसपी अकेले ही ताल ठोंक कर मैदान में उतरी। मायावती यह चुनाव जीतकर पांचवीं बार मुख्यमंत्री बनती हैं, तो उनका कद और बड़ा हो जाएगा। नतीजे इसके उलट आते हैं तो इस हार के बाद बीएसपी बिखर भी सकती है।

बीएसपी 1984 में बनी लेकिन सत्ता का स्वाद उसने स्थापना के 11 साल बाद चखा। संस्थापक कांशीराम का मानना था कि किसी भी तरह सत्ता की चाबी हाथ में लेना जरूरी है। दलितों के हाथ में सत्ता आएगी तभी कुछ किया जा सकता है। यही वजह है कि वह सत्ता पाने के लिए हर तरीके को जायज मानते थे। पहली बार उन्होंने मुलायम सिंह के साथ मिलकर सरकार बनाई।



उसके बाद 1995 में मुलायम सिंह की सरकार गिरा दी और मायावती पहली बार मुख्यमंत्री बनीं। उसके बाद से बीएसपी की राजनीति लगातार मायावती के इर्द-गिर्द ही घूमती रही। किसी भी नेता ने उनका विरोध किया तो उसे बाहर का रास्ता दिखा दिया गया। इस विधान सभा चुनाव से पहले भी मायावती ने आरके चौधरी, स्वामी प्रसाद मौर्य और ब्रजेश पाठक समेत कई नेताओं को बाहर का रास्ता दिखाया।

पांच साल सत्ता से बाहर रहने के बावजूद मायावती ने किसी से गठबंधन नहीं किया। हालांकि उनके सामने कई विकल्प थे लेकिन अकेले ही चुनाव लड़ने का निश्चय किया। इसे उनका आत्मविश्वास कहा जाये या अति-आत्म विश्वास, यह तो शनिवार को चुनाव के नतीजे ही तय करेंगे लेकिन यह तय है कि यह चुनाव मायावती के लिए करो या मरो वाला है।



अगर जीत मिलती है तो देश में बड़ी नेता के तौर पर उभरेंगी। सबसे ज्यादा बार मुख्यमंत्री रहने के अपने ही रेकॉर्ड को तोड़कर उनका कद और भी बड़ा हो जाएगा। खासतौर से केंद्र की सत्ता और नरेंद्र मोदी से अकेले ही मुकाबला लेने के बाद यह जीत मायावती के लिए बहुत बड़ी होगी। इस चुनाव में हार होती है तो उसके बाद उबरना बहुत मुश्किल होगा।

जीतने के मायने

देश की सबसे बड़ी दलित नेता के तौर पर मायावती की छवि पर मुहर लग जाएगी।

प्रदेश की सबसे बड़ी नेता के तौर पर उनको जाना जाएगा।

देश की राजनीति में दखल रखने की ताकत मिल जाएगी।

बीएसपी की सोशल इंजीनयिरिंग एक बार फिर कारगर मानी जाएगी।

सत्ता में आने के बाद पंजाब, उत्तराखंड सहित दूसरे राज्यों में भी पार्टी की गतिविधियां बढ़ाने में मदद मिलेगी।

हारने के मायने

पार्टी में भारी टूट-फूट के बाद किसी तरह उबरने के हार हुई तो पार्टी के बिखरने का खतरा बढ़ जाएगा।

विरोधियों से अकेले मुकाबला करके चुनाव में लड़ी बीएसपी सभी दलों के निशाने पर होगी और बिना सत्ता के मुकाबला करना मुश्किल होगा।

चुनाव से पहले बड़े नेता पार्टी छोड़ चुके हैं। हार के बाद अपनी ही पार्टी के नेताओं को सहेजना मुश्किल हो जाएगा।

पहले से ही सभी दलों के निशाने पर मायावती पर दूसरे दलों के हमले और बढ़ जाएंगे।

अपना अस्तित्व बचाए रखने के लिए कई समझौते।

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