लखनऊ। राजधानी लखनऊ के डालीबाग में मुख्तार अंसारी के अवैध निर्माण को ढहाया गया उस पर प्रशासन की नजर ही नहीं थी। यह जमीन निष्क्रांत है। यानी जो पाकिस्तान जा कर बस गए उनकी। वर्ष 1952 में ही कागजों में हेरफेर कर के इस जमीन का निष्क्रांत वाला ब्योरा खतौनी से हटा दिया गया। इस बीच कितने अफसर आए और चले गए लेकिन किसी ने सुध लेने का प्रयास नहीं किया। जब शासन से इन निर्माणों के बारे में पूछा गया तो गड़बड़झाला सामने आया।
प्रशासन अब बता रहा है कि यह जमीन मोहम्मद वसीम की थी। वर्ष 1952 में वह देश छोड़कर पाकिस्तान जा बसे। इसके बाद किसी अधिवक्ता टीएस कालरा ने अभिलेखों में हेरफेर की। सदर तहसीलदार शंभु शरण के अनुसार टीएस कालरा ने दस्तावेजों में छेड़छाड़ कर निष्क्रांत सम्पत्ति वाला हिस्सा ही गायब कर दिया। वजह यह है कि निष्क्रांत सम्पत्ति का भू उपयोग परिवर्तन कभी बदला नहीं जा सकता है। जांच के बाद इस बड़ी हेरफेर का पता लगा। इसकी जानकारी लखनऊ विकास प्राधिकरण को दी गई। टीएस कालरा ने न सिर्फ मुख्तार परिवार बल्कि कुछ अन्य परिवारों को भी मोहम्मद वसीम की सम्पत्ति बेची है। अब सभी पर धारा 33/39 के तहत कार्रवाई होगी।
यह है निष्क्रांत और शत्रु सम्पत्ति में अंतर
वर्ष 1947 के बाद जो लोग 1954 तक देश छोड़कर चले गए उनकी सम्पत्ति को निष्क्रांत घोषित किया गया। जिले के कलेक्टर इसके कस्टोडियन होते हैं। स्वामित्व राजस्व परिषद का माना जाता है। यह सम्पत्ति उन लोगों को ही दी जा सकती थी जो बंटवारे के समय पाकिस्तान छोड़कर भारत आए थे। 1954 के बाद देश छोड़कर पाकिस्तान में बसने वालों की सम्पत्ति को शत्रु सम्पत्ति कहा गया। इसका स्वामित्व मुम्बई में बैठे शत्रु सम्पत्ति के संरक्षक के पास होता है। इसका भी कस्टोडियन कलेक्टर यानी जिले के डीएम को बनाया गया है।