आगरा, अजय दुबे। ये तकनीक से कदमताल कर बहती बदलाव की बयार का असर है। सती प्रथा जैसी रूढि़यों में जकड़े रहे जिस देश में सुहाग उजड़ने के बाद महिला को जीने तक का अधिकार न था, उसी जमीं पर एक फौजी की बेवा की कोख से परिवर्तन की किलकारियां गूंजने वाली हैं। सूनी मांग के साथ साढ़े तीन साल से सामाजिक दुश्वारियों और चुनौतियों से लड़ने के बाद अब यह महिला स्पर्म बैंक में रखे पति के स्पर्म से गर्भ धारण करने जा रही है।
सामाजिक चुनौतियों को मात देकर ‘जिंदगी जिंदाबाद’ का ये अध्याय मुहब्बत की नगरी रचने जा रही है। चार साल पहले ओडिशा निवासी नायब सूबेदार और उनकी पत्नी का शहर के इनफर्टिलिटी सेंटर में इलाज शुरू हुआ था। हर महीने इलाज के लिए आने में असमर्थता जताने पर उनके स्पर्म सुरक्षित रख लिए गए थे। कुछ महीने इलाज के बाद हृदय संबंधी बीमारी से फौजी की मौत हो गई। पति की मौत के बाद 35 वर्षीय विधवा ने दूसरी शादी से इन्कार कर दिया। यही नहीं, स्पर्म बैंक में सुरक्षित स्पर्म से गर्भधारण की इच्छा जाहिर की, लेकिन सामाजिक बंधन आड़े आ गए। परिजन इसके लिए कतई राजी न थे। लोक-लाज भी एक प्रमुख वजह थी।
फिर भी विधवा महिला फैसले पर अडिग रही। परिवार और समाज के तर्को को आखिरकार खारिज करने में कामयाब हो ही गई। कई सालों की बगावत के बाद परिजनों ने गर्भधारण पर सहमति जता दी। अब शहर के एक इनफर्टिलिटी सेंटर में इन विट्रो फर्टिलाइजेशन (आइवीएफ) तकनीक से उसके गर्भधारण की प्रक्रिया शुरू की गई है।
20 साल तक स्पर्म सुरक्षित
स्पर्म बैंक में स्पर्म को माइनस 360 डिग्री तापमान पर रखा जाता है। इस विधि से 20 साल तक स्पर्म सुरक्षित रखे जा सकते हैं। इसके लिए 1500 से 2000 तक शुल्क लिया जाता है।
सिंगल मदर बनने का है अधिकार
वर्ल्ड फेडरेशन ऑफ गायनकॉलोजी के भारतीय प्रतिनिधि डॉ. नरेंद्र मल्होत्रा ने बताया 1997 में काइरो घोषणा में वूमेन रिप्रोडक्टिव राइट पर भारत सहित 143 देशों ने हस्ताक्षर किए थे। इसमें महिलाओं को बच्चे कितने और कब पैदा करने से लेकर सिंगल मदर बनने तक का अधिकार है। इस समय बनारस की 40 वर्षीय महिला का शहर के एक सेंटर में सिंगल मदर बनने के लिए इलाज चल रहा है।