भाजपा के वरिष्ठ नेता और पूर्व वित्तमंत्री यशवंत सिन्हा के इंडियन एक्सप्रेस में लिखे लेख के बाद भाजपा में शीर्ष स्तर पर वाकयुद्ध शुरू हो गया है, साथ ही भाजपा में खेमाबंदी भी सामने आने लगी है। यशवंत के पक्ष में जहां भाजपा सांसद और पूर्व केंद्रीय मंत्री शत्रुघ्न सिन्हा खुलकर सामने आ गए वहीं जेटली के पक्ष में पार्टी के बाकी नेता खड़े हो गए हैं, खास बात ये है कि इस मुद्दे पर खुद यशवंत के बेटे और केंद्रीय राज्यमंत्री जयंत सिन्हा ने भी जेटली का पक्ष लिया था। वहीं कल वित्तमंत्री अरुण जेटली ने भी यशवंत सिन्हा पर पलटवार करते हुए इशारों-इशारों में उन्हें 80 की उम्र में नौकरी का आवेदक बताया था।
जेटली के इस वार के बाद यशवंत कहां चुप रहने वाले थे उन्होंने एक बार फिर उन्होंने वित्तमंत्री पर वार किया है। इंडियन एक्स्रपेस की खबर के अनुसार यशवंत ने जेटली पर निशाना साधते हुए कहा कि, “अगर मैं आवेदक होता तो निश्चित तौर पर वह (अरुण जेटली) पहले नंबर पर नहीं होते”।
बता दें कि ये सारा विवाद उस समय शुरू हुआ था जब पूर्व केंद्रीय वित्तमंत्री यशवंत सिन्हा ने इंडियन एक्सप्रेस में एक लेख लिखा था, जिसमें उन्होंने बीजेपी सरकार की आर्थिक नीतियों पर सवाल खड़े किए थे।
इसके बाद गुरुवार को भी वह सरकार पर हमलावर रहे। जिसके बाद शाम होते होते वित्तमंत्री अरुण जेटली ने अपनी चुप्पी तोड़ी और कहा कि वे (यशवंत सिन्हा) वित्त मंत्री के रूप में खुद अपना ही रिकॉर्ड भूल गए हैं। 80 साल की उम्र में भी पद की लालसा रखने वाले सिन्हा नीतियों के बजाय व्यक्ति को निशाना बना रहे हैं।
चिदंबरम के साथ मिल गए हैं सिन्हा’
साथ ही उन्होंने सिन्हा पर पूर्व वित्त मंत्री एवं वरिष्ठ कांग्रेस नेता पी. चिदंबरम के साथ साठगांठ का आरोप लगाते हुए कहा कि उन्हें यह भी याद नहीं रहा कि दोनों एक-दूसरे के कितने बड़े कटु आलोचक थे। जेटली ने बृहस्पतिवार को दिल्ली एक पुस्तक विमोचन समारोह के दौरान यशवंत का नाम तो नहीं लिया लेकिन इशारों में कहा कि उनके पास न तो पूर्व वित्तमंत्री होने की सुविधा है और न ही ऐसा पूर्व वित्तमंत्री होने का सुख है जो अब स्तंभकार बन चुके हैं।
वित्त मंत्री जेटली ने कहा कि पूर्व वित्त मंत्री के नाते वे पॉलिसी पैरालाइसिस (यूपीए के दूसरे कार्यकाल में) को कैसे भूल सकते हैं। वे 1998 और 2002 में बैंकों के डूबे कर्ज के 15 फीसदी के स्तर पर जाने (जब सिन्हा वित्त मंत्री थे) को भी याद नहीं रखना चाहेंगे।
उन्हें यह भी याद नहीं रहेगा कि 1991 में देश का विदेशी मुद्रा भंडार 400 करोड़ डॉलर पर पहुंच गया था। यह सब कुछ भूल कर वे एक नई कहानी सुना सकते हैं, लेकिन दो पूर्व वित्त मंत्रियों के मोर्चा बना लेने से तथ्य नहीं बदल जाएंगे।