कानपुर। उत्तर प्रदेश निकाय चुनाव के बाद सभी राजनीतिक दलों के नेताओं की नजर अब मतगणना पर टिक गई है। साथ ही 2019 के लोकसभा चुनाव की तैयारी निकाय परिणाम के इर्द-गिर्द घूम रही है। कानपुर की मेयर समेत 110 पार्षदों को टिकट को लेकर चारों दलों के अंदर जबरदस्त विद्रोह हुआ। पर बाजीगिरी में माहिर श्रीप्रकाश जायसवाल ने अपनी ताकत दिखाते हुए पंजे का सिंबल वंदना मिश्रा के नाम करवा दिया तो वहीं भाजपा के कई दावेदारों को मात देकर यूपी के कैबिनेट मंत्री सतीश महाना ने अपने करीबी प्रमिला पांडेय को कमल का कैंडिडेट बनवा दिया। दोनों दिग्गजों ने अपने-अपने प्रत्याशी की जीत पक्की करने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगाया। मतदान के बाद तीसरी बार अगर यहां कमल खिलता है तो सांसद पद के लिए पूर्व मंत्री जायसवाल और वर्तमान मंत्री महाना के साथ सीधी टक्कर होने की संभावना बन रही है।
जीत-हार के बाद लोकसभा के नाम फाइनल
पूरे एक माह तक शहर में कई सभाएं, रोड शो हुए और जनता ने 22 नवंबर को अपने वोट की चोट कर कानपुर की सरकार चुन ली। लेकिन मतदान के बाद जहां सपा और बसपा के नेता ज्यादा उत्सुक नहीं दिखाई पड़ रहे हैं, तो वहीं भाजपा और कांग्रेसियों के अंदर जबरदस्त उहापोह की स्थित बनी हुई है। भाजपा के साथ ही कांग्रेस निकाय चुनाव को लोकसभा के रिहर्सल के तौर पर देख रही है और अगर पार्टी बढ़िया प्रदर्शन करती है तो कई नेताओं के दिन बहुर जाएंगे। वहीं हारने पर कुछ के पर जरूर कतरे जाएंगे। टिकट वितरण के दौरान कांग्रेस के पूर्व विधायक अजय कपूर ने खुलकर सामने आए थे और अपने करीबी ऊषा रत्नाकर शुक्ला को दिल्ली ले जाकर पार्टी अध्यक्षता से मुलाकात करवा टिकट की मांग रखी थी। लेकिन पूर्व मंत्री श्रीप्रकाश जायसवाल ने अपने पावर का इस्तमाल कर एक झटके में वंदना को प्रत्याशी घोषित करवा पूर्व विधायक के अरमानों पर पानी फेर दिया था। इसी के बाद कांग्रेस के दोनों दिग्गजों के बीच खाई बनी रही और मतदान तक जारी रही। यही हाल भाजपा के अंदर भी रहा और दक्षिण क्षेत्र की आगवाई कर रहे नेताओं ने अदंरखाने भितरघात किया।
कमल और पंजे के बीच काटे की टक्कर
मेयर पद के लिए श्रीप्रकाश की करीबी वंदना मिश्रा ने सपा व बसपा के मुकाबले अच्छा चुनाव लड़ा। वंदना का मुकाबला यूपी के कैबिनेट मिनिस्टर सतीश महाना की नजदीकी प्रत्याशी प्रमिला पांडेय के साथ हैं, और बड़े-बड़े राजनीति के जानकार भी ऊंट किस ओर बैठेगा, सही आंकलन करने में घबरा रहे हैं। राजनीति के प्रोफेसर डॉक्टर अनूप सिंह कहते हैं कि वोट पतिशत लोकसभा व विधानसभा चुनाव के मुकाबले कम पड़ा है। भाजपा अपने पुराने वोटबैंक ब्राम्हण, वैश्य, क्षत्रिय व कायस्थ के बल पर चुनाव के मैदान में टिकी है। अगर इनमें से 25 से 30 फीसदी वोट वंदना के पाले में चला गया तो कमल की डगर कठिन हो जाएगी। क्योंकि 21 लाख 25 हजार में से 9 लाख 44 हजार वोट पड़े हैं और इनमें से डेढ़ से पौने दो लाख वोट मुस्लिम समुदाय का है। मुस्लिम वोटर्स पूरे चुनाव प्रचार के दौरान साइलेंट मुद्रा में रहा और मतदान के दिन घर से निकला। जहां अधिकतर वोटर्स कांग्रेस के पक्ष में दिखाई दिए।
तो महाना के साथ अजय कपूर का टिकट पक्का
2017 चुनावी समर कांग्रेस और भाजपा के लिए अहम होने जा रहा है। कांग्रेस जहां सत्ता वापस पाने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगाएगी वहीं भाजपा कुर्सी बचाने के लिए कई अहम फैसले ले सकती है। जानकारों की मानें तो अगर कानपुर में भाजपा जीतती है तो पार्टी 2019 लोकसभा चुनाव में इन्हें टिकट देकर चुनाव के मैदान उतार सकती है। जहां इनका मुकाबला कांग्रेस के पूर्व मंत्री श्रीप्रकाश जायसवाल के बीच लड़ा जा सकता है। सूत्रों की माने तो लोकसभा चुनाव के वक्त पूर्व विधायक अजय कपूर मंत्री सतीश महाना के साथ नजर आ सकते हैं। महाना के जीतने के बाद इनकी रिक्त सीट से भाजपा कांग्रेस के पूर्व विधायक को टिकट देकर चुनाव लड़वा सकती है। जानकारों का मानना है कि पूर्व मंत्री को परास्त करने के लिए अजय कपूर लोकसभा चुनाव के वक्त भाजपा में जा सकते हैं और इसकी पूरी स्क्रिप्ट लिखी भी जा चुकी है।