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Thursday, November 7, 2024

यूपी में मायावती ने मारी बाजी, अपने विरोधियों को छोड़ा काफी पीछे!

लखनऊ । उम्र से कम या ज्यादा दिखना आमतौर पर हिन्दी फिल्मों के पर्दे पर देखने में मिलता है लेकिन विधानसभा चुनाव के दौरान यूपी की सियासत में कुछ इसी तरह का नजारा दिखा। 61 साल की बसपा प्रमुख मायावती के भीतर सत्ता में वापसी की उम्मीद का जोश लबालब दिखा। बसपा की रैलियों की अगर बात करें तो दलित आंदोलन की इस महानायिका में 55 साल की तेज-तर्रार महिला नजर आ रही थी। हर रोज दो सभाएं संबोधित करने का टारगेट फिक्स कर लोगों से मुखातिब हो रही मायावती अपनी उम्र से काफी कम नजर आ रही थी। मायावती ने 17वीं विधानसभा चुनाव के लिए 53 जनसभाओं के साथ अपना प्रचार अभियान शनिवार को पूरा कर लिया। मायावती ने जिस जोश के साथ यूपी चुनाव का प्रचार अभियान मेरठ और अलीगढ़ से शुरू किया था उसी अंदाज में वाराणसी पहुंचकर समाप्त किया। एक फरवरी से चार मार्च के बीच 32 दिनों में 53 चुनावी सभाओं के जरिए मायावती अपने सभी 403 प्रत्याशियों के लिए वोट मांगने पहुंचीं। उन्होंने ज्यादातर दिनों में दो-दो सभाएं कीं।
बड़ी शक्ति के रूप में नजर आईं मायावती
अगर जोश और भीड़ चुनावी नतीजे अपने पक्ष में करने का एक मापदंड है तो मायावती इस बार उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में एक बड़ी शक्ति के रूप में नजर आईं। मायावती की हर एक रैली में हज़ारों की संख्या में लोग उमड़े आए। हाइवे पर वाहनों से कहीं अधिक लोग नज़र आ रहे थे। ये उस समय की बात होती थी जब मायावती अपने हेलिकॉप्टर से वहां पहुंची भी नहीं होती थीं। उनके स्टेज पर आने के बाद तो पुलिस के लिए भीड़ को क़ाबू करना मुश्किल हो जाता था। इस बार मायावती की सभाओं में चुनावी रैली का माहौल कम और त्योहार का माहौल ज्यादा लगा। महिलाएं, बूढ़़े, बच्चे और जवान अपने परिवार के साथ स्टेज के सामने मायावती के दीदार के लिए टकटकी लगाए रहते थे।
हर सवाल की दिया जवाब
पहले बसपा प्रमुख मायावती एक टाइप किया हुआ रूक्का पढ़तीं थीं। पढ़ लिए जाने के बाद अगर कोई पत्रकार सवाल पूछे तो वह भड़क जाती थीं और उठकर चल देती थीं। लेकिन वे इन दिनों चुनावी मौसम में मुस्कराती दिखती रहीं और दलित या दौलत की बेटी जैसे असुविधाजनक सवालों के जवाब तक देती रहीं। दरअसल मायावती में यह परिवर्तन किसी आध्यात्मिक साधना का नहीं, बल्कि यूपी की सत्ता को फिर से पाने के रास्ते की एक मजबूरी की देन है।
मायावती का नया गणित
दलित और मुस्लिम वोट के बूते पर मायावती ने इस बार यूपी की सत्ता को हासिल करने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा दिया। दलित-मुस्लिम समीकरण के जरिये मायावती एक बार फिर यूपी की सत्ता हासिल करने की कोशिश में जुटी हैं। मायावती के लिए दोबारा यूपी की सत्ता हासिल करने का मौका है लेकिन चुनौती बड़ी है। अगर मायावती की पार्टी जीतती है तो जाहिर है उनका कद बढ़ेगा लेकिन अगर हार हुई तो पार्टी के भविष्य पर संकट के बादल मंडराने लगेंगे। पिछले विधानसभा चुनाव और लोकसभा चुनाव के निराशाजनक नतीजों के बाद बसपा अध्यक्ष के लिए यह चुनाव बहुत अहम है।

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