बीजेपी ने जिस गुजरात को हिंदुत्व की प्रयोगशाला के तौर पर स्थापित किया और विकास का तड़का लगाकर पांच बार चुनावों में जीत हासिल कर सत्ता पर विराजमान होती रही, आज उसी गुजरात की सियासी रणभूमि में कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी उसे टक्कर दे रहे हैं. इस जंग में जातीय समीकरण और सॉफ्ट हिंदुत्व राहुल के हथियार बने हुए हैं. राहुल के इस सक्रियता से गुजरात में दो दशकों से वेंटिलेटर पर पड़ी कांग्रेस में नई जान फुंकती नजर आ रही है. कांग्रेस कार्यकर्ता उत्साह और जोश से लबरेज हैं. हालांकि राहुल को इस सियासी जंग में जिन पैंतरों के चलते बढ़त मिलती दिख रही है, उनके पीछे कांग्रेस के गुजरात प्रभारी और राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का दिमाग बताया जा रहा है. आज कम से कम कांग्रेसियों के लिए तो गुजरात में गहलोत चाणक्य की भूमिका में हैं.
राहुल का लांचिंग पैड बना गुजरात
कांग्रेस गुजरात में पिछले 22 साल से सत्ता से बाहर है. इन दो दशकों में पहली बार पार्टी बीजेपी को टक्कर देती नजर आ रही है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का गृह राज्य होने के नाते गुजरात में होने वाले विधानसभा चुनाव काफी अहम हैं. इस चुनाव के नतीजे 2019 के लोकसभा चुनाव की इबारत लिखेंगे. गुजरात का चुनाव ऐसे वक्त में हो रहा है जब 2019 का चुनाव करीब है, राहुल गांधी की कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में ताजपोशी होनी है. राहुल गांधी ने गुजरात को अपना लॉन्च पैड बनाया और खुद को साबित करने के लिए उतरे हैं.
राहुल के कर्णधार गहलोत
गुजरात में कांग्रेस के पास भरत सोलंकी, अर्जुन मोडवाड़िया और एमएलए शक्तिसिंह गोहिल जैसे गिनती के नेता हैं, लेकिन ये नेता सिर्फ अपनी सीट निकालने तक ही सीमित हैं. ऐसे में कांग्रेस और राहुल गांधी के मार्गदर्शक की भूमिका में राज्य के कांग्रेस प्रभारी अशोक गहलोत हैं. गहलोत पिछले कई महीनों से गुजरात में डेरा डाले हुए हैं. बतौर गुजरात प्रभारी अशोक गहलोत ने यहां पार्टी के पक्ष में माहौल बनाने के लिए ऐसा रोड मैप बनाया जो बीजेपी के लिए मुसीबत का सबब बन गया है.
धर्म से जाति पर लौटती गुजरात की राजनीति
गुजरात में बीजेपी जाति पर धर्म का रंग चढ़ाकर पिछले पांच चुनाव से जीत दर्ज करती आ रही है. मोदी ने इस ट्रंप कार्ड से कांग्रेस को कमोबेश हाशिए पर लाकर खड़ा कर दिया. अशोक गहलोत ने गुजरात में बीजेपी से सत्ता छीनने के लिए फिर से धर्म पर जाति की राजनीति को हावी कर दिया है. यानी हिंदू कार्ड का जवाब जातीय कार्ड से देने की कांग्रेस की रणनीति है.
बीजेपी की राह में जातीय बैरियर
बीजेपी के लिए सबसे मुश्किल बात यह है कि जातिगत राजनीति उसे रास नहीं आती है. बिहार का विधानसभा चुनाव इसका उदाहारण है. यही वजह है कि कांग्रेस नेता अशोक गहलोत ने बिहार की तर्ज पर गुजरात के सियासी रण को जीतने के लिए जातीय कार्ड खेला है. अशोक गहलोत ने गुजरात के जातीय आंदोलन से निकली त्रिमूर्ति अल्पेश ठाकोर, हार्दिक पटेल, जिग्नेश मेवाणी जैसे नेताओं से कब और क्या वार्ता करनी है, कब राहुल गांधी से मिलाना है. इसकी पूरी पटकथा लिखी. अल्पेश ठाकोर ने तो बाकायदा कांग्रेस ज्वाइन भी कर ली है. कांग्रेस के जातीय कार्ड से बीजेपी में बेचैनी बढ़ी है. नरेंद्र मोदी को गुजरात में कहना पड़ा कि जातिवाद के बहकावे में ना आएं, जातिगत मुद्दों से देश के विकास में रुकावट आएगी.
व्यूह-रचने में गहलोत कामयाब
गुजरात में बीजेपी को घेरने के लिए गहलोत ने नोटबंदी, जीएसटी और पाटीदारों की नाराजगी जैसे मुद्दों को जमकर भुनाने की कोशिश की है. कांग्रेस की सभाओं और कांग्रेस के प्रयासों को देखते हुए लगने लगा है कि गुजरात के रण में बतौर चाणाक्य गहलोत रणनीति और व्यूह-रचना बनाने में काफी हद तक सफल रहे हैं. गुजरात में कांग्रेस के सारे नेता भी गहलोत के हर प्लान का समर्थन कर रहे हैं. गहलोत ने ऐसी सीटें तय की हैं, जहां मेहनत करने पर कांग्रेस जीत सकती है. गहलोत ने बीजेपी की मजबूत सीटों पर ज्यादा एनर्जी वेस्ट नहीं करने की रणनीति बनाई है. कांग्रेस ने ऐसी 135 सीटें चिह्नित की हैं जहां वो बीजेपी को टक्कर दे सकती है.
कांग्रेस को तुष्टिकरण से बाहर निकालने की कवायद
गुजरात में राहुल की नवसृजन यात्रा का प्लान भी अशोक गहलोत ने बनाया है. राहुल को कहां जाना है, किससे मिलना है और क्या कदम उठाना है. ये सब गहलोत की पठकथा का हिस्सा है. गुजरात में राहुल के सॉफ्ट हिंदुत्व की राह पर चलने की आइडिया भी गहलोत का ही है. गुजरात से राहुल गांधी बीजेपी द्वारा कांग्रेस पार्टी पर लगाए गए ‘हिंदू विरोधी’ और ‘अल्पसंख्यकों के तुष्टिकरण’ जैसे आरोपों का भी जवाब देने का प्रयास कर रहे हैं.