इलाहाबाद। उत्तर प्रदेश लोकसेवा आयोग और योगी सरकार के बीच सीबीआई जांच को लेकर चल रहा शीत युद्ध अब सतह पर आ चुका है। हाईकोर्ट पहुंच चुके इस मामले में राज्य सरकार को तगड़ा झटका लगा है। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सीबीआई को आदेश जारी किया है कि वह उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष व सदस्यों को कोई सम्मन जारी ना करें। यानी अध्यक्ष और सदस्यों के सम्मन पर हाईकोर्ट ने रोक लगा दी है। एक तरह से यह सरकार के खिलाफ आयोग की बड़ी जीत है और अब सीबीआई जांच बगैर अध्यक्ष व सदस्यों से पूछताछ के ही आगे बढ़ सकेगी।
मुख्य न्यायाधीश की खंडपीठ कर रही सुनवाई
गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग में पिछले कुछ सालों में हुई भर्तियों की जांच के लिए योगी सरकार ने सीबीआई जांच के लिए केंद्र सरकार से सिफारिश की थी। सीबीआई जांच पर मुहर लगने के बाद सीबीआई ने भी जांच के लिए अधिसूचना जारी कर दी थी थी, जिसके बाद उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग ने योगी सरकार के इस फैसले को इलाहाबाद हाईकोर्ट में चैलेंज किया। हाईकोर्ट में लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष अनिरुद्ध यादव व सदस्यों की याचिका पर चीफ जस्टिस डीबी भोसले और जस्टिस सुनील कुमार की खंडपीठ ने सुनवाई शुरू की और सुनवाई के दौरान इलाहाबाद हाईकोर्ट ने राज्य सरकार से जवाब मांगा और पूछा कि आख़िर किस आधार पर जांच की जा रही है? सरकार की ओर से कारण स्पष्ट ना हो पाने के कारण हाईकोर्ट ने आयोग को राहत देते हुए सीबीआई द्वारा पूछताछ के लिए जारी की जाने वाले ससम्मनपर रोक लगा दी है ।
18 जनवरी को अगली सुनवाई
सीबीआई द्वारा पूछताछ के लिए जारी होने वाले सम्मन पर रोक लगाने के बाद अब हाईकोर्ट ने अगली सुनवाई की तिथि 18 जनवरी को तय की है। अब 18 जनवरी तक केंद्र सरकार , राज्य सरकार और सीबीआई को इस मुद्दे पर अपना जवाब देना है। हाईकोर्ट ने पूछा है कि आखिर किन तथ्यों के आधार पर सीबीआई जांच कराई जा रही है। फिलहाल सीबीआई जांच का मुद्दा अब काफी दिलचस्प होता जा रहा है। क्योंकि हाईकोर्ट ने सीबीआई जांच पर तो रोक नहीं लगाई है, लेकिन पूछताछ के लिए जारी किए जाने वाले सम्मान पर रोक लगा दी है। यानी सीबीआई अगर जांच करना चाहेगी तो वह जांच करेगी, लेकिन बगैर अध्यक्ष व सदस्यों के पूछताछ के ही उसे अपनी जांच आगे बढ़ा नहीं पड़ेगी। ऐसे में सीबीआई जांच का कोई खास निष्कर्ष निकालना मुश्किल नजर आ रहा है।