28 C
Lucknow
Thursday, December 12, 2024

योगी स्पीड में कांग्रेस सुस्त, 7 विधायकों में भी नहीं चुन पा रही नेता

एक तरफ बीजेपी ने योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री चुन लिया, मंत्री चुन लिए और योगी सरकार धड़ाधड़ फैसले करने लगी. वहीं मुख्य विपक्षी दल समाजवादी पार्टी ने भी विधानसभा में अपना नेता चुन लिया. लेकिन, महज 7 सीटें जीतने वाली कांग्रेस यूपी में अब तक अपना नेता नहीं चुन पाई है.

दरअसल, यूपी में कांग्रेस के 7 विधायकों में 2 ऐसे विधायक हैं जो दूसरी बार विधानसभा पहुंचे हैं. उनमें एक हैं कुशीनगर से अजय सिंह लल्लू और दूसरी हैं राज्यसभा सांसद प्रमोद तिवारी की बेटी आराधना तिवारी. सूत्रों की मानें तो बाकी बचे पांचों विधायक आराधना को विधायक दल का नेता बनाने के हक में हैं, तो वहीं राहुल गांधी की पसंद लो-प्रोफाइल और ग्रामीण परिवेश के अजय सिंह लल्लू हैं. यहीं पर आकर पेंच फंसा हुआ है.

राहुल सभी विधायकों से एक राउंड मुलाकात कर भी चुके हैं और सबका मन टटोल चुके हैं. लेकिन वो अब तक फैसला नहीं कर पाए हैं. सूत्र ये भी बताते हैं कि, राहुल अगर अपनी पसंद थोपते हैं और संख्याबल को नजरअंदाज करते हैं तो डर ये है कि, बचे-खुचे विधायक कहीं पार्टी ना छोड़ जाएं. आखिर यूपी और उत्तराखंड में पार्टी छोड़ कर जाने वाले नेताओं की लंबी फेहरिस्त है.

ऐसे में सीनियर नेताओं की सलाह पर राहुल कोई जल्दबाजी नहीं करना चाहते. दरअसल, पार्टी के नेताओं का एक तबका हमेशा से प्रमोद तिवारी पर इल्जाम लगाता रहा है कि, लंबे अरसे तक प्रमोद कांग्रेस विधायक दल के नेता रहते हुए सत्ताधारी दल से करीबी रखते रहे और सिर्फ खुद को मजबूत करते रहे पार्टी को नहीं. हालांकि, लगातार चुनाव जीतने का रिकॉर्ड बनाने वाले प्रमोद तिवारी सोनिया गांधी को बार-बार इसकी सफाई दे चुके हैं, तभी उनको राज्यसभा सांसद बनने के लिए पार्टी का निशान मिला था. अब प्रमोद विरोधी नेता राहुल को समझाने में जुटे हैं कि, आराधना को नेता बनाना एक बार फिर प्रमोद के हाथों में कमान सौंपने जैसा होगा.

हालांकि, प्रमोद समर्थकों का तर्क है कि, उनकी बेटी का अलग व्यक्तित्व है, वो पढ़ी-लिखी तेज-तर्रार और अच्छी वक्ता हैं और एक को छोड़ सभी विधायक भी उनके साथ हैं. दूसरी तरफ, प्रमोद तिवारी अब बतौर राज्यसभा सांसद केंद्र की राजनीति ही करना चाहते हैं और प्रदेश की चुनावी राजनीति से दूरी बनाने के मूड में हैं. ऐसे में विधानसभा में आराधना को ही विधायक दल का नेता बनाये जाने में क्या हर्ज है.

कुल मिलाकर खस्ताहाल पार्टी में इस मुद्दे पर पेंच फंसा हुआ है. अब सवाल यही है कि, अब राहुल अपनी पसंद थोपते हैं या विधायकों की राय मानते हैं या फिर बीच का रास्ता निकालने की सूरत में कोई तीसरा बाजी मारता है. लेकिन एक तरफ खस्ताहाल पार्टी को दोबारा खड़ा करने की चुनौती से निपटने के लिए कोशिश शुरू करने की बजाय पार्टी छोटे-छोटे फैसले करने में इतनी देरी कर रही है. ऐसे में बुरे वक्त में पार्टी के हाल का अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है.

Latest news
- Advertisement -spot_img
Related news
- Advertisement -spot_img

कोई जवाब दें

कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें!
कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें