दीपक ठाकुर:NOI।
लखनऊ जो उत्तर प्रदेश की राजधानी है इसे इस लिए भी जाना जाता है क्योंकि कहा जाता था कि लखनऊ में गंगा जमुनी तहजीब की मिसाल देखने को मिलती है लेकिन राजनैतिक दलों के भाषणों और सरकारी विभाग की कार्यवाही ने इस तहज़ीब पर ग्रहण सा लगा दिया है ऐसा यहां के माहौल में सुनाई और दिखाई भी देने लगा है।
अब ताज़े मामले को ही ले लीजिए नगर निगम ने अपनी ज़मीन से अवैध कब्जा हटाने की कार्यवाही शुरू की उसे लगा उसकी ज़मीन पर दरिया वाली मस्ज़िद का एक गेट आ रहा है जिसे गिरा भी दिया गया उसके बाद तमाम मौलानाओं और मुस्लिम शिया समुदाय के लोगों ने इसका पुरज़ोर विरोध किया बात यहां तक तो ठीक थी लेकिन उसके बाद जो सुगबुगाहट शुरू हुई उसको सुनकर लगा कि यहां अब सबकुछ पहले जैसा नही रहा।
हमने लोगों को बातें करते सुना के लखनऊ में शियाओ पर जुर्म हो रहा है यहां मस्जिदों को गिराने की पहल होने लगी है जबकि ऐसे तमाम मंदिर हैं जो पूरी तरह अवैध हैं उन पर कोई कार्यवाही नही होती इस तरह की ज़्यादती को बर्दाश्त नही किया जाएगा।अब बताइये ये बाते एक छोटी सी दुकान पर सुनने को मिली तो वहां इस पर क्या प्रतिक्रिया देखने को मिलेगी जहां ये समुदाय भारी मात्रा में इकट्ठा होता होगा।
ये बात बहुत गंभीर है यहां सरकारी एजेंडे को साम्प्रदायिक चश्मा लगा कर देखा जा रहा है जो हमारे लिए ठीक नही है ऐसा नही है कि अवैध मन्दिरो पर बुलडोज़र यहां नही चला हो ऐसा नही है कि यहां मंदिरों को विशेष महत्व दिया जाता है बल्कि मस्जिदों को नही लेकिन यहां सोच बदलने लगी है अब ये गलती किसकी है राजनैतिक दल की या हमारी मानसिकता की ये आप पर निर्भर करता है लेकिन ऐसी सुगबुगाहट हमारे आपसी प्रेम और भाईचारे के लिए किसी बड़े खतरे से कम नही है।