दीपक ठाकुर:NOI।
बसपा सुप्रीमो मायावती इस वक़्त घायल शेरनी से कम नही लग रहीं।भाजपा को सबक सिखाने के लिए वो महागठबंधन को राजी हो गई है,राज़ी ही नही उन्होंने खुद आगे बढ़कर सभी दलों को साथ आने का आह्वाहन भी कर दिया है ताकि 2019 के लोक सभा चुनाव में किसी तरह भाजपा को सत्ता विहीन किया जा सके।
मायावती के इस महागठबंधन में शामिल होने के कयास भर ही लगाए जा रहे थे माना ये जा रहा था कि अगर सभी विपक्षी दल एक साथ हो भी गए तो मायावती का स्टैंड सबसे अलग ही रहेगा लेकिन फूलपुर और गोरखपुर में आये उप चुनाव के नतीजों ने ये बात साबित कर दी कि उनका साथ भाजपा को परास्त करने का जरिया बन सकता है।सपा ने बसपा के साथ से ये दोनों सीट जीत ली फिर बारी आई बसपा कैंडीडेट को राज्यसभा पहुंचाने की लेकिन इस बार बसपा को झटका लगा जिसका कारण बहन जी अखिलेश को नही बल्कि उनके विधायक को बता रही है मतलब साफ है कि राज्यसभा गंवाने के बावजूद भी मायावती को अखिलेश से कोई परहेज नही है बल्कि उन्हें विश्वास है कि अखिलेश यादव का साथ उनको उनकी मंज़िल तक पहुंचाएगा।
यही वजह है कि जिस बसपा पार्टी ने सपा से केवल उपचुनाव और राज्यसभा चुनाव तक का साथ किया था अब वही बसपा ये कह रही है कि उसको महागठबंधन बना कर भाजपा को हराना है।ज़ाहिर तौर पर लगता भी ऐसा ही है कि भाजपा को अकेले दम पर परास्त कर पाना किसी एक दल के बूते का नही है इससे तो अच्छा यही है कि जब दुश्मन एक हो तो सब दुश्मन दोस्त बन जाएं।
वैसे मायावती का ये दांव आने वाले लोकसभा चुनाव में कितना कारगर साबित होगा इस बात का अंदाज़ा इसी बात से लग जाता है कि पिछली बार महागठबंधन में कैसी सेंध लगी और वो बनने से पहले ही बिखर गया तो इस बार नया क्या होगा इसमें भी संदेह है और इस बात के भी चांसेस ज़्यादा है कि अगर ऐसा हुआ तो भाजपा को ही फायदा होगा क्योंकि ज़रूरी नही कि आपके महागठबंधन को जनता का वोट मिले,जनता जान चुकी है कि खिचड़ी की सरकार में काम कम विवाद ज़्यादा होता है।