दिल्ली
नरेंद्र मोदी की अगुआई वाले एनडीए को राष्ट्रपति चुनाव में वोट शेयर के मामले में कांग्रेस के नेतृत्व वाले विपक्ष से तकरीबन 15 फीसदी बढ़त हासिल है। मौजूदा राजनीतिक समीकरणों के आधार पर किया गया आकलन तो यही दिखा रहा है।
ईटी के एक मोटे आकलन के मुताबिक, एनडीए (23 पार्टियों के सांसद और राज्यों के सदनों में जनप्रतिनिधि) के पास राष्ट्रपति चुनाव से संबंधित इलेक्टोरल कॉलेज में तकरीबन 48.64 फीसदी वोट हैं। इसके उलट, राज्य या केंद्र में राजनीतिक समीकरणों के आधार पर कांग्रेस की अगुआई वाले विपक्ष के साथ जाने वाली 23 राजनीतिक पार्टियों का वोट शेयर 35.47 फीसदी बैठता है। विपक्ष का यह कुनबा न सिर्फ वोट शेयर के मामले में एनडीए से काफी पीछे है, बल्कि केवल बीजेपी के वोट से भी कम है। विपक्ष के 35.47 फीसदी वोट शेयर के मुकाबले बीजेपी के पास इस इलेक्टोरल कॉलेज में 40 फीसदी वोट हैं।
प्रणव मुखर्जी का कार्यकाल खत्म होने से पहले ही नए प्रेजिडेंट को लेकर पार्टियों में सरगर्मी तेज हो गई है।
एसपी, बीएसपी की हार से बिगड़ा विपक्ष का खेल
हाल में पांच राज्यों में हए विधानसभा चुनावों में मिली शानदार कामयाबी के कारण बीजेपी की पकड़ मजबूत हुई है। पंजाब और गोवा में जहां बीजेपी गठबंधन के विधायकों की संख्या में गिरावट आई, वहीं उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और मणिपुर में जोरदार बढ़त से पार्टी को राष्ट्रपति चुनाव से जुड़े इलेक्टोरेल कॉलेज में 5.2 फीसदी वोटों का कुल फायदा हुआ। पंजाब और गोवा में कांग्रेस का बेहतर परफॉर्मेंस भी विपक्ष को सहारा देने में कामयाब नहीं हुआ। दरअसल, यूपी में समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी की करारी हार के कारण ऐसा हुआ।
ये 6 पार्टियां बन सकती हैं गेम चेंजर
छह राजनीतिक पार्टियों के एक ग्रुप के पास 13 फीसदी से भी ज्यादा वोट शेयर हैं। इनमें तमिलनाडु की एआईएडीएमके, बीजेडी (ओडिशा), वाईएसआरसीपी (आंध्र प्रदेश), आम आदमी पार्टी (दिल्ली और पंजाब) और आईएनएलडी (हरियाणा) शामिल हैं। इन राजनीतिक पार्टियों का रुख राष्ट्रपति चुनाव को दिलचस्प बना ससकता है। इन पार्टियों ने राज्य स्तर के राजनीतिक समीकरणों की वजह से बीजेपी और कांग्रेस से समान दूरी बना रखी है। सैद्धांतिक तौर पर बात करें तो कांग्रेस की अगुआई वाले विपक्ष के इन छह पार्टियों को अपने पाले में करने में सफल रहने पर सत्ताधारी ग्रुप और विपक्ष के बीच मुकाबला कांटे का हो सकता है। कांग्रेस की अगुवाई वाले विपक्ष का 35.47 वोट और इन छह पार्टियों का इकट्ठा 13 फीसदी वोट शेयर एनडीए के वोट शेयर के तकरीबन बराबर हो जाएगा।
एनडीए को चाहिए बस जरा सा सहारा
बहुमत के आंकड़े को पार करने के लिए एनडीए को सिर्फ एक पार्टी (या ज्यादा से ज्यादा दो छोटी पार्टियों) के समर्थन की जरूरत होगी। चूंकि बीजेपी केंद्र की सत्ता में है, लिहाजा उसके पास चुनावी नतीजे अपने पक्ष में करने के लिए काफी राजनीतिक गुंजाइश है, बशर्ते आक्रामक शिव सेना बागी तेवर न अख्तियार कर ले। हाल में खत्म हुए बजट सत्र के दौरान बीजेपी ने एनडीए के सहयोगी दलों के साथ बैठक कर जहां राष्ट्रपति चुनाव से पहले एकता का संकेत दिया, वहीं कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी भी राष्ट्रपति चुनाव के लिए व्यापक गठबंधन बनाने के लिए टॉप विपक्षी नेताओं से मुलाकत कर सक्रिय हो गई हैं। तृणमूल कांग्रेस की ममता बनर्जी ने भी हाल में बीजेडी चीफ नवीन पटनायक से मुलाकात की थी। ये राजनीति बैठकें इस बात का संकेत हैं कि नए राष्ट्रपति के चुनाव के लिए सरकार और विपक्ष, दोनों तरफ से पर्दे के पीछे से काम चल रहा है। हालांकि, जीत का पलड़ा बीजेपी की अगुआई वाले एनडीए के पक्ष में भारी नजर आ रहा है।
कैसे बनता है इलेक्टोरल कॉलेज
राष्ट्रपति पद के चुनाव में लोकसभा और राज्यसभा के सभी सांसद वोट देते हैं। इनके अलावा 31 विधानसभाओं के विधायक भी वोट देते हैं। इन सांसदों और विधायकों को मिलाकर ही राष्ट्रपति पद के चुनाव का इलेक्ट्रोरल कॉलेज बनता है। इसमें कुल 784 सांसद और 4114 विधायक हैं। इस कॉलेज में वोटरों के वोट की वैल्यू एक नियम के अनुसार अलग-अलग होती है। इसके अनुसार, हर सांसद के वोट की वैल्यू 708 है जबकि विधायक के वोट की वैल्यू संबंधित राज्य की विधानसभा की सदस्य संख्या और उस राज्य की आबादी पर आधारित होती है। इस तरह यूपी के हर विधायक के वोट की वैल्यू सबसे ज्यादा 208 है, वहीं सिक्किम के हर विधायक के वोट की वैल्यू सबसे कम सात है। हालांकि, कई छोटी पार्टियां ऐसी हैं, जिनके लिए इन तीन समूहों- एनडीए, कांग्रेस की अगुआई वाले विपक्ष और दोनों पार्टियों से अलग धड़े में फिट होना मुश्किल हैं। राष्ट्रपति चुनाव में ऐसी पार्टियों का वोट शेयर 3 फीसदी से भी कम है।