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Monday, November 11, 2024

राहुल का बहरीन दौरा साधेगा कर्नाटक का सियासी समीकरण!

बहरीन दौरे पर हैं राहुल गांधी
राहुल गांधी अध्यक्ष बनने के बाद पहली विदेश यात्रा पर है. इस बार मंज़िल है बहरीन जहां वो भारतीय लोगों से मिलेंगें. हालांकि राहुल गांधी औपचारिक तौर पर GOPIO के बुलावे पर है, लेकिन मकसद सियासी है. राहुल गांधी ने बहरीन के प्रिंस खालिद बिन हम्माद अल खलीफा से मुलाकात की और जवाहरलाल नेहरू की लिखी किताब ‘भारत एक खोज’ तोहफे के तौर पर दी. राहुल ने ट्वीट करके कहा कि एनआरआई हमारे देश के विश्व में प्रतिनिधि है और भारत के आर्थिक ताकत के प्रतीक के तौर पर है.

इससे पहले गुजरात चुनाव में एनआरआई को लुभाने के लिए राहुल गांधी ने अमेरिका की यात्रा की थी, जिसमें उन्होंने भारतीय मूल के लोगों से मुलाकात भी की थी. कांग्रेस को लग रहा है कि गुजरात चुनाव में इसका फायदा भी मिला. इस सियासी मकसद के लिए राहुल गांधी बहरीन में हैं. उसकी मुख्य वजह कर्नाटक के चुनाव है जहां के काफी लोग खाड़ी देशों मे रहते है.

राहुल गांधी के साथ अमेरिका यात्रा पर साथ रहे पूर्व सूचना प्रसारण मंत्री मनीष तिवारी कहते है कि ‘बहरीन जाने का राहुल गांधी का सियासी मतलब नहीं है, बल्कि विदेश में रह रहे भारतीयों के साथ संबध मज़बूत करने की कवायद है. GOPIO का बुलावा ये दर्शाता है कि विदेशी मूल के लोगों के बीच प्रधानमंत्री का हनीमून पीरियड खत्म हो गया है. और राहुल गांधी की लोकप्रियता बढ़ रही है’. राहुल गांधी के करीबी लोगों का कहना है कि इस तरह के दौरों से राहुल की इमेज भी अच्छी हो रही है. कर्नाटक चुनाव में इसका फायदा भी मिल सकता है.
बहरीन दौरे पर राहुल गांधी

क्या है GOPIO
ग्लोबल आर्गनाइज़ेशन फॉर पीपुल ऑफ इंडियन ओरिजिन (GOPIO) का गठन 1989 में न्यूयॉर्क में हुआ था, जिसके पहले अध्यक्ष इंदर सिह थे. अभी इसके चेयरमैन अमेरिका के रह रहे भारतीय मूल के थॉमस अब्राहम है और सस्था के अध्यक्ष सिलिकॉन वैली के नीरज बक्सी है. इस संस्था में तकरीबन पूरे भारतीय एनआरआई समूह के लोग प्रतिनिधि के तौर पर है. ये भी कहा जाता है कि एनआरआई के बीच ये सबसे महत्वपूर्ण और ताकतवर संस्था है. इसलिए राहुल गांधी सियासी मतलब भी हल हो रहा है कि वो एक साथ इतने बड़े एनआरआई समूह से रूबरू हुए. इस बैठक में तकरीबन पचास देशो के प्रतिनिधि हिस्सा ले रहे है.
कर्नाटक चुनाव में एनआरआई क्यों महत्वपूर्ण
कर्नाटक के बहुत सारे लोग खाड़ी देशों मे रहते हैं. खासकर दक्षिण कनाडा के इलाकों के लोग. इसके अलावा समुद्र तटीय क्षेत्रों में रहने वाले लोगों का कारोबारी रिश्ता गल्फ के लोगों से काफी पुराना है. खाड़ी देशों में तकरीबन 35 लाख भारतीय रहते हैं, जो ज्यादातर इन्ही इलाकों के रहने वाले हैं. कर्नाटक में इस साल विधानसभा चुनाव है. यही एक बड़ा राज्य है जहां कांग्रेस की सरकार है. राहुल गांधी के लिए ये किला बचाना काफी महत्वपूर्ण है, क्योंकि दक्षिण भारत में कांग्रेस को और मजबूत होने के लिए इस राज्य की सियासी जंग जीतना ज़रूरी है.

कर्नाटक में इस साल होने हैं विधानसभा चुनाव
बेंगलूरु में रह रहे वरिष्ठ पत्रकार विजय ग्रोवर बताते हैं कि

‘ये मोदी स्टाईल का कैंपेन है, जो राहुल गांधी ने अपनाया है. इसका फायदा कांग्रेस को तटीय कर्नाटक में मिल सकता है. क्योंकि यहां को लोग खाड़ी देशों में रहते हैं जो बड़े बिज़नेसमैन भी हैं. यहां के लोग अपने इलाकों में काफी प्रभावशाली हैं, जिसका फायदा उठाने की फिराक में राहुल गांधी हैं. इस इलाके के लोग होटल, निर्यात और सोने के कारोबार से गल्फ से जुड़े हुए हैं.’

क्या है कर्नाटक का चुनावी समीकरण
कर्नाटक में कांग्रेस सत्ता में है, लेकिन 2013 में चुनाव जीतने का कारण ये भी था कि पूर्व मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा बीजेपी से अलग होकर चुनाव लड़े थे. जिससे बीजेपी को नुकसान हुआ, लेकिन अब येदियुरप्पा बीजेपी के साथ हैं. इसलिए कांग्रेस के सामने मुश्किल है. इसके अलावा अल्पसंख्यक वोट में हिस्सेदारी के लिए जेडीएस भी इस राज्य में मज़बूत है. जो कांग्रेस का खेल कई इलाकों मे खराब कर सकती है.
पूर्व मुख्यमंत्री एचडी कुमारास्वामी बीजेपी के साथ मिलकर पहले सरकार बना चुके हैं. इसलिए कांग्रेस की सरकार तभी बन सकती है जब पार्टी को स्पष्ट बहुमत मिले. वर्तमान मुख्यमंत्री सिद्धारमैया भी कभी जेडीएस में ही थे. इसलिए कांग्रेस के कई बड़े नेता मुख्यमंत्री को पंसद नहीं करते. क्योकि इस बात से नाराज़ होकर पूर्व मुख्यमंत्री एसएम कृष्णा पार्टी छोडकर बीजेपी में शामिल हो चुके हैं.
कर्नाटक में जातीय समीकरण
कर्नाटक में कांग्रेस के सामने सत्ता बचाने की चुनौती है. सिद्दारमैया फॉर्मूला बनाने में लगे हुए हैं. कांग्रेस दलित, अल्पसंख्यक और पिछड़ों के समीकरण बनाने में लगी

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