कहानी: बद्रीनाथ को अपने लिए एक टिपिकल दुल्हन की तलाश है, वैदेही को इंडिपेंडेंट लाइफ पसंद है। उन्हें मिलकर परंपरा को तोड़ना है और अपने किरदार को दोबारा परिभाषित करना है।
रिव्यू: ‘बद्रीनाथ की दुल्हनियां’ एक ऐसी फिल्म है, जिसमें सामाजिक मुद्दों की भरमार है और जिसे धर्मा प्रॉडक्शन ने पूरी सावधानी के साथ हैंडल किया है। लेकिन यहां हैंडल यानी संभालने का काम काफी चालाकी से किया गया है।
झांसी और कोटा जैसे छोटे से शहर की पृष्ठभूमि पर है इस फिल्म की कहानी, जहां पितृसत्तात्मक समाज का ही बोलबाला है। यह फिल्म बद्रीनाथ (वरुण धवन) नामक एक एक लड़के की कहानी है, जो किसी साहूकार का बेटा और अपने लिए दुल्हन की तलाश में लगा हुआ है। उसकी मुलाकात किसी शादी में वैदेही नाम की एक लड़की से होती है और फिर बद्री शादी के लिए उसके पीछे ही पड़ जाता है। लेकिन, वैदेही शादी को लेकर समाज के प्रेशर के आगे झुकने से इनकार कर देती है। वह छोटे शहर की लड़की जरूर है, लेकिन उसके अपने विचार हैं, महत्वकांक्षाएं हैं और सबसे अहम किसी मुद्दे पर स्टैंड लेने की उसमें एक अलग हिम्मत है।
वैदेही का किरदार कहानी का मुख्य आधार है। वह बेहद गुस्से वाली लेकिन सच्ची लड़की है। उसे पीछे धकेल दिया जाता है, लेकिन वह फिर उठकर आगे आ जाती है। वह अपने सपनों को सुरक्षित रखती है और कोई उसे बेवकूफ नहीं बना सकता। उसके पिता को दिल की बीमारी भी है। वैदेही के जरिए, फिल्म ने कई अहम मुद्दों को उठाया है, जिसमें लिंगभेद से जुड़े मुद्दे, महिलावाद, सहमति जैसे मुद्दे शामिल हैं। लेकिन कहानी को जिस तरह से दिखाया गया है (विस्तार से भरे सॉन्ग सीक्वंस, फ्लैशबैक और सिनेमैटिक मोमेंट्स), ये फिल्म की रफ्तार को कम करते हैं। एक वक्त तो ऐसा लगता है कि सभी किरदार पब्लिक सर्विस अनाउंसमेंट कर रहे हों, जो कि काफी काल्पनिक सा लगता है।
यह एक ऐसी कहानी है, जिसके क्लाइमैक्स का अंदाज़ा आप बड़ी आसानी से लगा लेते हैं। तो लगभद दो घंटे सीट पर बैठकर उस चीज का इंतज़ार करना, जिसके बारे में आपको पहले से ही पता हो यह काफी असहज करता है। लेकिन, फिल्म की चकाचौंध और इसके मजेदार व फनी डायलॉग आपको बांधे रखते हैं।
वरुण और आलिया स्क्रीन पर दमदार लगे हैं। इनकी खूबसूरत जोड़ी आपके चेहरे पर मुस्कान बिखेर देती है। बद्री के रूप में धवन काफी प्यारे लगे हैं। उन्होंने कुछ हाई ड्रामा सीन को भी काफी प्रभावशाली तरीके से निभाया है। आलिया ने भी बेहतरीन प्रदर्शन किया है, लेकिन कभी-कभी ऐसा लगता है कि फिल्म में उनकी बोली और भाषा जुहू और झांसी के बीच फंस कर रह गई हो।