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Friday, October 11, 2024

रीजेंसी सुपरस्पेशलिटी हॉस्पिटल, लखनऊ ने कॉम्प्लीकेटेड एंडरोलॉजिकल प्रक्रिया से40 साल के व्यक्ति की जान बचायी

  • मरीज के अव्यवस्थित बायीं किडनी में 35 स्टोन थे
  • सुपाइन परक्यूटेनियस नेफ्रोलिथोटॉमी (पीसीएनएल) प्रक्रिया से स्टोन हटाया जाता है और अंगों को चोटिल होने से बचाया जाता है।
    लखनऊ: रीजेंसी सुपरस्पेशलिटी हॉस्पिटल, लखनऊ के डाक्टरों की टीम ने परक्यूटेनियस नेफ्रोलिथोटॉमी (पीसीएनएल) प्रक्रिया से एक 40 साल के व्यक्ति की जान बचायी। यह केस बहुत मुश्किलवदुर्लभ केस था क्योंकि मरीज के बायीं किडनी में बहुत सारे स्टोन थेऔर मरीज बायीं ‘डायफ्रेगमेटिक पाल्सी’ से पीड़ित था।

डायाफ्राम सांस लेने के लिए एक महत्वपूर्ण मांसपेशी है और इसमें कमजोरी होने से सांस लेने में परेशानी हो सकती है ।’डायफ्रेगमेटिक पाल्सी’ फ्रेनिक नर्व में चोट लगने के कारण होता है और इसमें रेस्पिरेटरी पावर कमज़ोर हो जाती है ।और पेट के अंग जैसे आँतो, तिल्ली आदि चेस्ट में चली जाती है, जिससे हृदय एवं सांस की नली दायीं तरफ खिसक जाती है।

इस तरह की कंडीशन ज्यादा देखने को नहीं मिलती है। डायफ्रेगमेटिक पाल्सी से किडनी में स्टोन होने से यह प्रक्रिया बहुत कॉम्प्लीकेटेड हो जाती है। इस तरह की कंडीशन के निवारण के लिए बहुत ही कुशल मेडिकल ग्रुप और एडवांस आपरेशन थिएटर सेटअप की जरुरत होती है।

मरीज (श्री ओम प्रकाश) कोरीजेंसी सुपरस्पेशलिटी हॉस्पिटल, लखनऊ में तब लाया गया जब उन्हें कई महीने से पेट के बायीं ओर दर्द होने की शिकायत हुई। जांच हुई तो पता चला कि डायफ्रेगमेटिक पाल्सी से उनकी किडनी अपने सही जगह से खिसक गयी थी। लेफ्ट किडनी में 32 स्टोन मिले। वह करीब एक साल से इस समस्या से पीड़ित थे और कई हॉस्पिटल में चक्कर लगा चुके थे लेकिन कोई भी उनका इलाज करने में सक्षम नहीं हुआ क्योंकि यह बहुत ही मुश्किल सर्जरी थी।

रीजेंसी सुपरस्पेशलिटी हॉस्पिटल, लखनऊ के एम सीएच – यूरोलॉजी, डॉ सिद्धार्थ सिंह जी ने इस केस पर बोलते हुए कहा, ” ख़राब खाने की आदतों और लाइफस्टाइल के कारण किडनी में स्टोन होने की समस्या पिछले एक दशक से बढ़ रही है। यह समस्या अब कॉमन हो गयी है। हालांकि यह केस बहुत कॉम्प्लीकेटेड था क्योंकि डायफ्रेगमेटिक पाल्सी के कारण किडनी की स्थिति सही नहीं थी। मरीज इस समस्या से एक साल से पीड़ित था। स्टोन निकालने के लिए तुरंत एक्शन लेने की जरूरत थी। हमने यूएसजी निर्देशित पीसीएनएल किया क्योंकि तकनीकी रूप से यही योग्य प्रक्रिया थी और इससे मरीज को, यूरोलोजिस्ट्स, एनेस्थेसिओलोजिस्ट्स को कई फायदे थे। इस एंडोस्कोपिक सर्जरी से दर्द कम होता है, हॉस्पिटल में कम रहना पड़ता है, और बॉडी में बिना किसी कट से रिकवरी बहुत तेज होती है।”

अल्ट्रासाउंड-निर्देशित पीसीएनएल के हर केस का औसत खर्चा फ्लोरोस्कोपी-निर्देशित पीसीएन से लगभग 30% कम होता है। इस प्रक्रिया से न केवल मरीज को दर्द से आराम मिलता है बल्कि सर्जरी के बाद मरीज तुरंत सामान्य जीवन में वापस आ जाता है। कोरोनावायरस महामारी के दौरान इस तरह की सर्जरी में यह फायदा है की मरीज को ज्यादा दिन तक हॉस्पिटल में नहीं रहना पड़ता। हॉस्पिटल में रहने से कोरोनावायरस इन्फेक्शन और हॉस्पिटल एक्वायर्ड इन्फेक्शन (HAF) से इन्फेक्ट होने का चांस ज्यादा रहता है।

डॉ सिद्धार्थ सिंह जी ने आगे कहा, “यह सर्जरी एडवांस मेडिकल इक्विपमेंट तथा सबसे अच्छी एनेस्थेसिया टीम की मौजूदगी से यह सर्जरी सफल हो पायी। इस तरह के केस अक्सर मेट्रोपोलीटिन शहरों (यहाँ पर फैसिलिटी एडवांस होती है) में ले जाए जाते हैं। हमारे पास भी लखनऊ में भी एडवांस इक्विपमेंट और जरूरी फैसिलिटी है, इसलिए हमने इस सर्जरी को सफलतापूर्वक किया। हम इस तरह के कॉम्प्लीकेटेड केसेस को अक्सर हैंडल करते रहते हैं। हम इस तरह की सर्जरी (पीसीएनएल) में लखनऊ में टॉप पर होकर खुश हैं।“

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