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Tuesday, November 5, 2024

लालजी टंडन: ऐसा नेता जो मुख्यमंत्री पद के योग्य था

‘बाबू जी नहीं रहे।’ सुबह 7 बजकर 4 मिनट पर आशुतोष टंडन ने यह ट्वीट किया। वह लालजी टंडन के बेटे और योगी आदित्यनाथ सरकार में काबीना मंत्री हैं।

85 वर्षीय मध्य प्रदेश के राज्यपाल लालजी टंडन ने उसी लखनऊ में अंतिम सांस ली, जिस लखनऊ के वे बेटे थे, जिसने उन्हें और जिस लखनऊ को उन्होंने पहचान दी।

दोनों एक दूसरे में गुथे थे। वह भाजपा की पुरानी पीढ़ी के, लखनऊ में अटल बिहारी वाजपेयी के निधन के बाद सबसे बड़े नेता रहे।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लालजी टंडन के निधन पर शोक व्यक्त करते हुए ट्विटर पर लिखा, ‘उन्होंने उत्तर प्रदेश में भाजपा को मजबूत करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।’

यह बात सच भी है। वाजपेयी के राजनीतिक संन्यास के बाद टंडन ने लखनऊ में भाजपा की पकड़ कम नहीं होने दी। टिप्पणीकार अरविंद कुमार सिंह ने टंडन को अवधी संस्कारों वाला अनूठा नायक बताया है।

सिंह ने लिखा, ‘जिन्होंने चंद्रभानु गुप्त जैसे दिग्गज को नहीं देखा रहा हो वे टंडनजी में उनका रूप देख सकते थे। उन्होंने रात-दिन श्रम करके लोगों के बीच अपना आधार और साख बनाई थी। वे उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बनने लायक थे लेकिन मुख्यमंत्री बनने के लिए उनके साथ जाति का अवरोध था।’

लखनऊ के ज्यादा थे, भाजपा के कम

अपने समय के चर्चित हिंदी दैनिक जनसत्ता में काम कर चुके और लखनऊ के जाने-माने पत्रकार अम्बरीश कुमार ने लालजी टंडन को श्रद्धांजलि देते हुए फेसबुक पर लिखा, ‘जनसत्ता जैसा अखबार ज्यादातर नेताओं को बहुत पसंद भी नहीं था। खैर, टंडन जी इस मामले में आम भाजपा नेताओं की अपेक्षा उदार थे अटल बिहारी वाजपेयी की तरह, उन्ही की परम्परा वाले। वैसे वे लखनऊ के नेता ज्यादा थे भाजपा के कम।’

कल्याण कहने लगे थे, लालची टंडन

हालांकि मतभेद होने के बाद कल्याण सिंह ने लालजी टंडन को नया नाम दे दिया था, लालची टंडन। कल्याण सिंह अपने दलीय साथी की महत्वाकांक्षाओं पर टीका कर रहे थे। लालजी टंडन पर सरकारें गिरवाने के आरोप भी लगे लेकिन इन सबके बावजूद वह अपनी अटल प्रेरित सॉफ्ट छवि को कभी कम्यूनल और कर्कश नहीं होने दी।

जिंदा रखी विपक्ष की भूमिका

राजनीतिक विरोधी बाकियों की आलोचना करते रहे लेकिन लालजी टंडन का हमेशा सम्मान करते थे। टंडन का ज्यादातर करियर विपक्ष की राजनीति करते हुए बीता। विपक्ष को कैसे अपनी भूमिका मारक करनी चाहिए, लालजी टंडन नेताओं की नई पौध के लिए इसकी खान थे।

घरों पर नाम थे, नामों के साथ ओहदे थे
बहुत तलाश किया कोई आदमी न मिला

-बशीर बद्र

लेकिन लखनऊ में ऐसा एक आदमी था, जो अब नहीं रहा।


यह टिप्पणी हमारे लिए दिल्ली के युवा पत्रकार प्रियांशू ने लिखी है। उनसे 7827501916 पर संपर्क किया जा सकता है।

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