रूही श्रीवास्तव-NOI।
इस योजना का उद्देश्य ग्रामीण जीवन स्तर को बेहतर बनाना था।इसके अंतर्गत प्रत्येक सांसद को अपने निर्वाचन क्षेत्र से किसी एक गांव को गोद ले कर 2016 के आने दो एक आदर्श गांव के रूप में प्रतिष्ठित करना था और 2019 के आते आते दो और गाँवो का उत्तर दायित्व लेकर ज्यादा से ज्यादा गाँवो को इस इस योजना से जोड़ना था। इस योजना के अंतर्गत प्रधानमंत्री जी ने वाराणसी का जयापुर गांव, मुलायम सिंह ने आजमगढ़ का तमोली गांव, बसपा सुप्रीमो लखनऊ का माल गांव और सोनिया गांधी ने रायबरेली का उड़वा गांव चुना था।
2014 में 543 लोकसभा सांसद में से 500 तथा 245 राज्यसभा में से 203 सांसदों ने इस योजना में प्रतिभाग किया था, दूसरा चरण आते ही यह आंकड़ा घटकर 340 और 126 पहुंच गया और 2019 के आते आते या संख्या 141 और 32 में बदल गई ।हर चरण में यह आंकड़ा घटा चला गया लापरवाही का आलम कुछ इस कदर था कि करीब 65 फीसदी सांसदों ने अपनी सांसद निधि का एक भी रुपया खर्च ना किया ।कई सांसद तो ऐसे हैं जो गोद लिए हुए गांव में एक बार भी झांकने तक नहीं गये ।क्या हुआ उन वादों का जो गांव में विकास की गंगा बहाने की बात किया करते थे ।विकास की गंगा का तो पता नहीं लेकिन विकास की गंदगी जरूर बहते दिख रही है। जिस सरकारी स्कूल को कान्वेंट स्कूल मे तब्दील करने की बात कही थी उसमें कान्वेंट का तो पता नहीं और साथ ही उसकी छत का भी कुछ पता नहीं ।
शिक्षा स्वास्थ्य ,रोजगार, बिजली ,पानी और कृषि के विकास की बात सिर्फ घोषणा पत्रों में ही क्यों दिखाई देती है। असल जिंदगी में क्यों नहीं। गोद लिए गांव अभी भी अभिभावक विहीन है ।हमारे देश का विकास ग्रामीण विकास के समानुपाती है। क्या कभी राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का संपूर्ण एवं सर्वांग विकसित गांव का सपना पूरा हो सकेगा?