नई दिल्ली।यूपी सरकार द्वारा अपने चुनावी वादे को पूरा करते हुए किसानों के कर्ज माफी की भले ही सराहना हो रही हो लेकिन ऐसे कदमों का असर भारतीय अर्थव्यवस्था पर बहुत बुरी तरह पड़ सकता है। एक अमेरिकी ब्रोकरेज फर्म का कहना है कि ऐसे लोक-लुभावने कदमों से 2019 लोकसभा चुनावों तक बोझ जीडीपी का 2 प्रतिशत हो जाएगा। यूपी के बाद अन्य राज्यों में भी किसानों के कर्ज माफी की मांग होने लगी है।
बैंक ऑफ अमेरिका के मेरिल लिंच ने सोमवार को एक नोट जारी करते हुए कहा, ‘2019 के लोकसभा चुनावों से पहले किसानों की लोन माफी राजकोषीय और ब्याज दर पर जोखिम खड़ा करने वाली है । इससे कर्ज व्यवसाय की संस्कृति (क्रेडिट कल्चर) प्रभावित होती है। कंपनी का अनुमान है कि यह माफी जीडीपी का करीब 2 प्रतिशत होगी।’
नोट में कहा गया कि यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ द्वारा 5 बिलियन डॉलर (36,359 करोड़ रुपए) का लोन माफ किया गया जो राज्य की जीडीपी का 0.4 प्रतिशत है। यूपी की देखादेखी अन्य राज्यों में सरकारें या विपक्षी पार्टियां ऐसा कदम उठा सकती हैं।
बता दें कि केंद्र सरकार ने साफ किया हुआ है कि राज्य सरकारें अपनी वित्तीय हालत को देख कर ही ऐसे फैसले लें और केंद्र की ओर से राज्यों को कोई मदद नहीं मिलेगी। भारत के अधिकतर राज्य 3.5 प्रतिशत से ज्यादा का राजकोषीय घाटा पहले से ही झेल रहे हैं।
देश के अन्य राज्य जैसे महाराष्ट्र, हरियाणा और तमिलनाडू में भी लोन माफी की मांग उठने लगी है। मद्रास हाई कोर्ट ने प्रदेश सरकार को आदेश दिया है कि वह किसानों का सारा कर्ज माफ करे जिससे राज्य के राजकोष पर 4,000 करोड़ रुपए का बोझ आएगा।
राज्य सरकारों द्वारा ऐसे कदम उठाए जाने को ‘चिंताजनक’ बताते हुए लिंच ने आरबीआई गवर्नर उर्जित पटेल के उस बयान की सराहना की है जिसमें उन्होंने लोन माफी पर प्रश्न उठाया था।