लखनऊ, शैलेन्द्र कुमार। आज-कल हर जगह पैसे का खेल चल रहा है। पैसे से हर चीज खरीदी जा सकती है यहां तक किसी की ईमानदारी भी। आज-कल तो पैसे ने अपना पांव ऐसे पसारा है कि जैसे कि सूर्य की किरणें संसार में फैली हुईं हैं। हर जगह बस पैसा का दबदबा चलता है। जिन लोगों के पास पैसा है उनका तो कानून भी कुछ नहीं करता है और जिन लोगों के पास नहीं है वो लोग कानून की चक्की में पिसते रहते हैं।
बता दें कि दुर्घटना में लोगों को मौत के घाट उतार देने वाले पैसेवाले रसूखदार आरोपियों को जेल न भेजकर थाने से ही छोड़ा जा रहा है। और सरकार कहती है कि सब एक समान हैं और सबको एक समान न्याय मिलेगा। लेकिन सरकार की बातों और वादों को तो कानून के रखवाले घर की ताख पर रख देते हैं। और रसूखदारों के घर की पहरेदारी करते नजर आते हैं।
सड़क हादसों के अधिकांश मामलों में पुलिस खेल कर रही है। एक जैसी दुर्घटना में रसूखदार आरोपी को थाने से बेल मिल जाती है और साधारण आरोपी को जेल भेज दिया जाता है। पुलिस के उच्चाधिकारियों का कहना है कि सड़क हादसे में मौत के मामलों में सात वर्ष से कम की सजा होती है। ऐसे मामलों में पुलिस के पास आरोपी को निजी मुचलके पर छोड़ने का अधिकार है।
लेकिन अब सवाल तो यह उठता है कि एक जैसी दुर्घटना में पुलिस पक्षपात की कार्यवाई क्यों कर रही है। जिस के पास पैसे का दम है वह किसी से नहीं कम है, लेकिन जिसके पास पैसे नहीं है, वह सब से कम है। आपको बता दें कि किस केस में कहां कार्यवाई हुई है और कहां नहीं-
यहां हुई गिरफ्तारी
फरवरी 2016– देवा रोड पर ट्रक चालक शाकिर अली ने मदार बख्श की बारह वर्षीय बेटी मीना बख्श को कुचल दिया और उसकी मौके पर ही मौत हो गई। घटना के बाद लोगों ने ट्रक चालक को दौड़कर पकड़ा और चिनहट पुलिस के हवाले कर दिया। पुलिस ने मुकदमा दर्ज कर आरोपी को न्यायालय भेज गया, जहां से वह जेल भेज दिया गया।
यहां नहीं हुई गिरफ्तारी
केस एक- 12 मार्च 2017– आइआइएम रोड पर तेजरफ्तार कार सवार नोएडा के बड़े व्यवसायी अशोेक राय ने इटौंजा निवासी बाइक सवार दोस्त अशोक व जीतेंद्र को रौंद दिया। घटना में दोंनो की मौके पर ही मौत हो गई। आसपास मौजूद लोगों ने कार चालक को पकड़कर मड़ियांव पुलिस को सौंपा। मड़ियांव पुलिस ने आरोपी चालक को थाने से छोड़ दिया।
केस दो- 16 मार्च 2017– ताड़ीखाना के पास एक रसूखदार महिला अधिकारी की कार से साइकिल सवार की मौत हो गई। कार ड्राइवर चला रहा था और घटना के समय महिला कार में मौजूद थीं। आसपास मौजूद लोगों ने आरोपियों को मड़ियांव पुलिस के सौंप दिया, लकिन पुलिस ने उन्हें थाने से ही छोड़ दिया।
इस तरह से जिसके पास पैसे का और पहुंच का दम था वह आसानी से छूट गये और जिनके पास पैसा और पहुंच नहीं थी, वह कानून के हत्थे चढ़ गया। यही नहीं देवा रोड पर पिछले महीने सड़क दुर्घटना में बालिका की मौत हो गई। आरोपी ट्रक चालक था, इसीलिए उसे जेल भेज दिया गया। और वहीं मड़ियांव में पांच दिन के अंदर दो सड़क दुर्घटनाओं में दो लोगों की मौत हो गई। दोनों ही दुर्घटनाओं में आरोपी रसूखदार थे, इसलिए एफआइआर दर्ज होने के बावजूद उन्हें थाने से ही बेल मिल गई।
वहीं पूर्व डीजीपी विक्रम सिंह का कहना है कि- सात वर्ष से कम की धाराओं में भी पुलिस के पास आरोपी को न्यायालय में प्रस्तुत करने का पूरा अधिकार है, न्यायालय निर्णय लेगा कि आरोपी को जेल भेजना है कि नहीं। सड़क दुर्घटना के आरोपियों को थाने से छोड़ना गलत है। और स्टंट की घटनाओं में तो आरोपी युवकों के माता-पिता के खिलाफ भी कार्यवाई होनी चाहिए।
अब सवाल यह उठता है कि क्या जो लोग पैसे और पहुंच वाले लोग हैं कानून उन्हीं की मदद करेगा, लेकिन जो लोग पैसे और पहुंच वाले नहीं हैं उनके लिए कानून कुछ नहीं करेगा। जिस तरह से सरकार कानून और पुलिस के गुण गाते हैं उस तरह से तो देखा जाए, तो कानून और उसके रखवाले ठीक उसके उल्टा ही कर रहें हैं। तो क्या हर किसी के पास पैसा होना जरूरी है जिसे भी कानूनी न्याय चाहिए?