मुंबई।पिछले 2-3 दिन से सोशल मीडिया पर एक तस्वीर वायरल हो रही है। इसमें मरे हुये एक बछड़े के पेट में भरा प्लास्टिक कचरा दिख रहा है। दरअसल इस तस्वीर के जरिये फटॉग्रफर योगेश यादव ने प्लास्टिक कचरे की भयावह सच्चाई दिखाने की कोशिश की है। इस तस्वीर को ‘महाक्ष’ नामक एक फटॉग्रफी कॉम्पिटिशन की ‘आउट ऑफ द बॉक्स’ कैटिगरी में प्रथम स्थान मिला है।
मुंबई में बाई साकरबाई दिनशॉ पेटिट हॉस्पिटल फॉर ऐनिमल्स के सचिव कर्नल (रिटायर्ड) डॉ. जे. सी. खन्ना बताते हैं कि मृत गाय की सर्जरी में उसके पेट से कम से कम 40-50 किलो प्लास्टिक कचरा निलकता है। पशुओं की आकस्मिक मृत्यु की एक बड़ी वजह यह कचरा है।
सड़कों पर घूमने वाले आवारा पशु आसानी से इस प्लास्टिक कचरे के जाल में फंस जाते हैं। यह कचरा हम इंसान ही इधर-उधर फेंकते हैं। ऐसे जानवरों की डेडबॉडी को चील-कौवे भी नहीं खाते हैं। डॉ. खन्ना कहते हैं कि इस कारण इनकी डेडबॉडी सड़ती रहती है लेकिन प्लास्टिक फिर भी विघटित नहीं होती है, यह सालों तक वैसी की वैसी ही रहती है।
क्योंकि गायों के जबड़ों का स्ट्रक्चर ऐसा होता है कि उन्हें पता ही नहीं चलता कि वे क्या खा रही हैं। उनके दांत और मुंह उनके खाने को लेकर बहुत सेंसिटिव नहीं होते, इस कारण उनको अहसास ही नहीं हो पाता कि उनके पेट में क्या जा रहा है। इसी कारण से चारे से लेकर प्लास्टिक बैग तक, वे सब खा लेती हैं लेकिन उनका पाचनतंत्र प्लास्टिक पचा नहीं पाता। वह उनके पेट में वैसी की वैसी ही पड़ी रहती है। इस कारण उनके पाचनतंत्र खराब भी हो जाता है।
डॉ. खन्ना बताते हैं कि इस बात का पता तुरंत नहीं चलता क्योंकि गायों को उल्टी नहीं होती। लेकिन जब खाना उनकी नाक से बाहर आने लगता है तब पता चलता है कि पाचनतंत्र में गड़बड़ी है। मुंबई में उनके पास हर साल ऑपरेशन के लिये गायों के करीब 3 केस आते हैं लेकिन ऑपरेशन के बाद उनके जिंदा रहने की संभावना बहुत कम होती है।
साथ ही, सड़क पर मरने वाली गायों का कोई स्पष्ट आंकड़ा न उपलब्ध होने के कारण प्लास्टिक के गंभीर खतरे की तरफ किसी का ध्यान नहीं जाता। न केवल प्लास्टिक बल्कि लोहे के टुकड़े और दूसरी धारदार किनारों वाली चीजें चीजें भी गाय के पेट में जाकर खतरा पैदा करती हैं। इन सब कारणों से उनके दिल पर असर पड़ता है। कई बार दिल काम करना भी बंद कर देता है।