इरफान शाहिद
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की संसदीय सीट पर अभी तक किसी पार्टी ने अपना उम्मीदवार घोषित नही किया था।अटकले ये लगाई जा रही थी कि इस बार कांग्रेस इस सीट पर अपना मास्टर स्ट्रोक लगाएगी और प्रियंका वाड्रा को मोदी के खिलाफ चुनावी मैदान में उतारेगी।इस बात पर खुद प्रियंका ने ये कह कर मुहर लगाई थी कि अगर उनकी पार्टी के अध्यक्ष उनके भाई राहुल गांधी कहते हैं तो वो वाराणसी से चुनाव लड़ने के लिए तैयार रहेंगी।
इसी बयान के बाद ये कयास लगने लगे थे कि शायद इस बार कांग्रेस भाजपा से इस सीट को लेकर कड़ी टक्कर देगी लेकिन गुरुवार के दिन जो खबर कांग्रेस की तरफ से बाहर आई उसने ये बात साबित कर दी कि कांग्रेस ये मान चुकी है कि मोदी से उनकी संसदीय सीट वापस लेना आसान काम नही है।शायद यही वजह है कि कांग्रेस ने जिस उम्मीदवार का नाम मोदी के सामने रखा है वो 2014 में वाराणसी से अपनी ज़मानत तक बचाने में नाकाम रहे थे।
जी सही समझा आपने के कांग्रेस ने 2014 के अपने प्रत्याशी अजय राय को 2019 में भी मौका दिया है लेकिन इसे मौका कहना इसलिए गलत होगा क्योंकि अजय राय के इस सीट पर जीतने की संभावना ना के बराबर ही है ऐसा पिछली लोकसभा चुनाव में उनकी स्थिति को देख कर आसानी से कहा जा सकता है।2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वाराणसी सीट पर साढ़े तीन लाख से भी अधिक वोटों से जीत दर्ज की थी वही आम आदमी पार्टी के अध्यक्ष,वर्तमान में मुख्यमंत्री दिल्ली अरविंद केजरीवाल दूसरे नम्बर पर रहे थे और कांग्रेस के अजय राय 75 हजार 614 वोट के साथ तीसरे नम्बर पर ही आ सके थे।
अब बताइये 75 हजार वोट पाने वाले उम्मीदवार की उम्मीदवारी इस बार नरेंद्र मोदी को किसी प्रकार की चुनौती दे सकती है या उनके लिए फिर एक बार लोकसभा की राह आसान करने का माध्यम ही साबित हो सकती है।इसका आकलन कोई भी कर सकता है हां अगर प्रियंका को लेकर ये दांव खेला जाता तो शायद मामला एक तरफा ना होता पर फिलहाल तो वहां भाजपा की ही जय होते दिखाई दे रही है।और यही बात साबित करती है कि कांग्रेस ये मान चुकी है कि वाराणसी से मोदी को टक्कर देना आसान नही इसलिए समर्पण ही करना बेहतर रहेगा।