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Sunday, February 9, 2025

विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस (10 सितम्बर) पर विशेष
जीवन है अनमोल : इसको न समझें कोई खेल

अतुल यादव

  • हताशा व निराशा में कोई भी गलत कदम न उठायेंजीवन मनुष्य के लिए एक अनमोल उपहार है ईश्वर के द्वारा प्रदत एक सर्वोत्तम प्रति है ऐसे यूं ही व्यर्थ ना गवाएं जीवन और समस्याएं एक दूसरे के पूरक हैं जन्म से लेकर मृत्यु तक प्रत्येक व्यक्ति अनेक समस्याओं से घिरा रहता है चाहे वह सामाजिक हो चाहे वह आर्थिक हो चाहे वह वातावरण से संबंधित हो चाहे वह बीमारी से संबंधित हो चाहे वह उसके नैतिक और मोरल कर्तव्यों से संबंधित हो इन सब का अपनी दक्षता और कौशल के साथ मुकाबला करना चाहिए और फिर भी कोई सी भी तरीके की कोई समस्या या असहजता व्यक्ति को अपने जीवन में महसूस होती है तो उसका फ्री सॉल्यूशन ढूंढना चाहिए विकल्प तलाशना चाहिए तथा आत्महत्या जैसे कुकृत्य से बचना चाहिए यह प्रत्येक व्यक्ति की जिम्मेदारी है कि अपने समाज में अपने आसपास ऐसे व्यक्तियों को पहचाने जो लगातार अवसाद में हैं किसी ना किसी तरीके की परेशानी में हैं या उनका समाज से अलगाव होता जा रहा है क्योंकि मानसिक रूप से अवसाद वाले रोगी सबसे ज्यादा आत्महत्या करते हैं एक जिम्मेदार नागरिक होने के नाते आप उनको समझाएं उनके साथ समय साझा करें उनको उचित सलाह दें काउंसलिंग दें
  • अपनों से करें बात, हर समस्या का होगा समाधान आत्महत्या किसी भी समस्या का समाधान नहीं है प्रत्येक व्यक्ति को अपनी स्वयं की जिम्मेदारी निश्चित करते हुए परिवार की समाज की और राष्ट्र की जिम्मेदारी निश्चित करते हुए इस एक्ट से बचना चाहिए तथा लोगों को जागरूक करना चाहिए कि यह एक असामाजिक तथा गलत कार्य है
    कासगंज 10 सितम्बर-2020 । जीवन में जल्द से जनपद कासगंज में राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम के द्वारा सुसाइड प्रीवेंशन और मैनेजमेंट ऑफ सुसाइड विषय पर field visit ke dauran लोगों को जागरूक किया जाता है आत्महत्या जैसे antisocial act ke दुष्प्रभाव के बारे में भी जागरूक किया जाता है लोगों को समझाया जाता है किसी भी समस्या का हल आत्महत्या नहीं है कोई भी ऐसा व्यक्ति जो इस तरीके से सोचता है या अपने वार्निंग सिम्टम्स शो करता है तो उसको समझाएं उससे बातें करें अच्छे से गाइड करें और उसे साइकेट्रिस्ट के पास ले जाएं से यथासंभव मनोज चिकित्सा उपलब्ध करवाएं ग्रुप टीम के द्वारा समय-समय पर आत्महत्या तथा इसे पढ़ने वाले सामाजिक आर्थिक दुष्प्रभाव के बारे में समुदाय में जाकर जागरूक किया जाता है हासिल कर लेने की तमन्ना और एक-दूसरे से आगे निकलने की होड़ में आज लोग बेवजह मानसिक तनाव का शिकार हो रहे हैं । इसमें जरा सी नाकामयाबी अखरने लगती है और लोग अपनी जिन्दगी तक को दांव पर लगा देते हैं । कोरोना काल में भी लाक डाउन के चलते तमाम लोगों की नौकरियां चलीं गयीं, लोगों को अपनी रोजी-रोजगार छोड़कर वापस गाँव लौटना पड़ा । लोग शुरू में इसे लेकर तनाव में थे लेकिन अपनों के बीच बैठकर जब समस्या रखी तो उसका कोई न कोई रास्ता जरूर निकला । इसलिए जब भी हताशा-निराशा में कोई भी गलत कदम उठाने की बात दिमाग में आये तो सबसे पहले अपनों के करीब जाएँ । इन्हीं मामलों को देखते हुए हर साल 10 सितम्बर को विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस मनाया जाता है । इसे मनाने का मकसद आत्महत्या को रोकने के लिए लोगों में जागरूकता पैदा करना । इसके जरिये यह सन्देश देने की कोशिश की जाती है कि आत्महत्या की प्रवृत्ति को रोका जा सकता है इस वर्ष वर्ल्ड सुसाइड प्रिवेंशन डे (विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस) की थीम है- “आत्महत्या रोकने को मिलकर काम करना ”

कोरोना काल में मीडिया में ऐसी कई खबरें आयीं कि कोरोना उपचाराधीन ने डर के कारण आत्महत्या कर ली , इसमें पढ़े लिखे लोग भी शामिल थे | कुछ लोगों ने आर्थिक तंगी से परेशान होकर आत्महत्या कर ली | आत्महत्या का सीधा जुडाव मानसिक स्वास्थ्य से है |

इंटरनेशनल एसोसिएशन फॉर सुसाइड प्रिवेंशन के अनुसार विश्व में दस से पंद्रह लाख लोग हर साल आत्महत्या करते हैं , यानि हर 40 सेकेंड में एक व्यक्ति की मृत्यु आत्महत्या से होती है।

नेशनल क्राइम रिकार्ड्स ब्यूरो की 2019 की रिपोर्ट के अनुसार कासगंज में आत्महत्या की दर 2.4 प्रति लाख जनसंख्या है मतलब यह है कि एक लाख की आबादी पर लगभग दो लोग आत्महत्या करते हैं वहीं राष्ट्रीय दर 10.4 प्रति लाख जनसंख्या है।

सूबे के मानसिक स्वास्थ्य के नोडल अधिकारी डा. सुनील पाण्डेय ने बताया, यदि कोई व्यक्ति लंबे समय से हीन भावना से ग्रस्त है अथवा आत्महत्या करने की सोच रहा है तो वह एक मानसिक बीमारी से ग्रस्त है। मानसिक अस्वस्थता के कारण ऐसी परिस्थिति उत्पन्न हो सकती है , उचित परामर्श और चिकित्सा पद्धति के माध्यम से इसका उपचार किया जा सकता है। आज कोरोना के दौर में आत्महत्या की जो ख़बरें मीडिया में आई हैं वह इस बात की और इशारा करती हैं कि लोगों में इस बीमारी के प्रति डर बहुत अधिक है तथा बहुत से लोग आर्थिक असुरक्षा से ग्रसित हैं | इसमें मीडिया का अहम् रोल है | प्रेस काउन्सिल ऑफ़ इंडिया के दिशानिर्देशों के अनुसार – मीडिया आत्महत्या के स्थान का विवरण न दे | वह आत्महत्या के मामलों की ख़बरों में सनसनीखेज सुर्खियाँ का उपयोग न करे, व ऐसी ऐसी भाषा का उपयोग ना करें जो आत्महत्या को सनसनीखेज़ या सामान्य करती हैं, या इसे समस्याओं के समाधान के रूप में प्रस्तुत करती हैं । आत्महत्या के लिए उपयोग की गई विधि के वर्णन या आत्महत्या के प्रयास में प्रयुक्त विधि का विवरण समाचार में ना करें। आत्महत्या के मामले की रिपोर्टिंग या समाचार प्रकाशन के दौरान फोटोग्राफ, वीडियो फुटेज या सोशल मीडिया लिंक का उपयोग ना करें आदि।

समस्या है तो समाधान भी है।

मेन्टल हैल्थ के अरुण कुमार का कहना है – The world suicide prevention day हर साल 10 सितंबर को मनाया जाता है!! International Association for suicide prevention (iasp).. के द्वारा यह ऑर्गेनाइज्ड किया जाता है इस डेका डब्ल्यूएचओ भी को स्पॉन्सर है इस दिवस को मनाने का उद्देश्य संपूर्ण विश्व में आत्महत्या को रोकना तथा इसके बारे में जागरूकता फैलाना है कि यह एक गलत एक्ट है|की फील्ड मे जाकर वो जानकारी देते है की आत्महत्या करना गलत है और कैंप भी आयोजित किए जाते है जब व्यक्ति अवसादग्रस्त या तनाव में होता हैं तो वह चीजों को वर्तमान क्षण के परिप्रेक्ष्य में देखता है । एक सप्ताह अथवा एक माह के बाद यही चीजें भिन्न रूप में दिखाई देने लगती हैं। जो आत्महत्या करने के बारे में सोचते है, वह मरना नहीं चाहते बल्कि केवल अपनी पीड़ा को मारना चाहते हैं। ऐसे में उन्हें अकेले उस स्थिति का सामना करने की कोशिश नहीं करनी चाहिए। अपने परिवार के किसी सदस्य या मित्र अथवा किसी सहयोगी से बात भर कर लेने पर उसका समाधान मिल सकता है।

मेन्टल हैल्थ कॉउंसलर के अरुण कुमार के अनुसार- आत्महत्या प्रवृत्ति वालों की पहचान आसानी से नहीं कर सकते, लेकिन कुछ असमान्य लक्षण से पीड़ितों की मनोस्थिति के बारे में जाना जा सकता है।
उन्हें ठीक से नींद नहीं आती, उनका आत्मविश्वास कम हो जाता है, वे अपने मनोभावों को व्यक्त करने में भ्रमित रहते हैं, उनकी खानपान की आदतों में अचानक बड़ा बदलाव देखने को मिलता है. या तो वे बहुत कम खाते हैं या बहुत ज़्यादा। आमतौर वे अपने फ़िज़िकल अपियरेंस को लेकर उदासीन हो जाते हैं, उन्हें फ़र्क़ नहीं पड़ता कि वे कैसे दिख रहे हैं, धीरे-धीरे वे लोगों से कटने लगते हैं। कई बार वह खुद को नुक़सान भी पहुंचाते हैं। इस स्थिति में परिवार का योगदान महत्वपूर्ण हो जाता है, वे वस्तुस्थिति को समझकर उनका ख्याल रखें एवं जरूरत पड़ने पर उनका उपचार कराएं ।

क्या करें यदि मन में ऐसे विचार आते हों?
मुख्य चिकित्सा अधिकारी के अनुसार- जीवनशैली में बदलाव लाएं, ख़ुद पर ध्यान देना शुरू करें, खानपान को संतुलित करें, नियमित रूप से कुछ समय व्यायाम या योग करते हुए बिताएं। नकारात्मक सोच को बाहर का रास्ता दिखाएं। सबसे महत्वपूर्ण बात अकेले न रहें, परिवार और दोस्तों के संग रहें, सकारात्मक होकर कार्य करे। याद रखें, हर एक ज़िंदगी महत्वपूर्ण है इसे भरपूर जियें और तनाव से दूर रहें । और अपने बच्चों पर ध्यान दें उन्हे खुश रखने की कोशिश करें और ज़्यादा से ज़्यादा टाइम अपने बच्चों को दें

कासगंज हेल्पलाइन लाइन नंबर 8769975535 अरुण कुमार से परामर्श लें मेन्टल हेल्थ कॉउंसलर
सरकार द्वारा जारी हेल्पलाइन नम्बर 1075 पर पर भी इस सुविधा का लाभ ले सकते हैं | निमहंस (नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ़ मेंटल हेल्थ एंड न्यूरो साइंस) के टोल फ्री नम्बर – 080-46110007 पर कॉल कर परामर्श ले सकते हैं | इसके अलावा 7 सितम्बर को मानसिक स्वास्थ्य से सम्बंधित समस्याओं के समाधान हेतु परामर्श के लिए सरकार ने किरन हेल्पलाइन न. – 1800-500-0019 जारी किया है |

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