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Sunday, September 8, 2024

“विश्व फ़ोटोग्राफ़ी दिवस” पर विषेश

 

 

लखनऊ,विमल किशोर- न्यूज़ वन इंडिया। विश्व फ़ोटोग्राफ़ी दिवस प्रत्येक वर्ष 19 अगस्त को मनाया जाता है। संसार में प्रकृति ने प्रत्येक प्राणी को जन्म के साथ एक कैमरा दिया है, जिससे वह संसार की प्रत्येक वस्तु की छवि अपने दिमाग में अंकित करता है। वह कैमरा है उसकी ‘आँख’। इस दृष्टि से देखा जाए तो प्रत्येक प्राणी एक फ़ोटोग्राफ़र है। वैज्ञानिक तरक्की के साथ-साथ मनुष्य ने अपने साधन बढ़ाना प्रारंभ किये और अनेक आविष्कारों के साथ ही साथ कृत्रिम लैंस का भी आविष्कार हुआ। समय के साथ आगे बढ़ते हुए उसने इस लैंस से प्राप्त छवि को स्थायी रूप से सहेजने का प्रयास किया। इसी प्रयास की सफलता वाले दिन को अब “विश्व फ़ोटोग्राफ़ी दिवस” के रूप में मनाया जाता है।

फोटोग्राफी की शुरुआत

फोटोग्राफी की आधिकारिक शुरुआत आज से 175 साल पहले, वर्ष 1839 में हुई थी. फ्रांस सरकार ने 19 अगस्त, 1839 को इस आविष्कार को मान्यता दी थी. इसलिए 19 अगस्त को अब विश्व फोटोग्राफी दिवस के रूप में मनाया जाता है.इस मौके पर फोटोग्राफी के इतिहास और विकास से जुड़े विभिन्न पहलुओं पर नजर डाल रहा है आज का नॉलेज.विश्व फोटोग्राफी दिवस आज

विश्व फोटोग्राफी दिवस का आयोजन प्रत्येक वर्ष आज के दिन यानी 19 अगस्त को किया जाता है. दरअसल, 9 जनवरी, 1839 को फ्रेंच एकेडमी ऑफ साइंस ने डेगुएरोटाइप प्रोसेस को मान्यता प्रदान करने की घोषणा की थी. वर्ल्ड फोटोटुडे डॉट ओआरजी की रिपोर्ट के मुताबिक, 19 अगस्त, 1839 को डेगुएरा द्वारा इजाद की गयी फोटोग्राफी तकनीक (डेगुएरोटाइप प्रोसेस) को फ्रांस सरकार ने मान्यता दी थी और इस आविष्कार को ‘विश्व को मुफ्त’ मुहैया कराते हुए इसका पेटेंट खरीदा था.
हालांकि, यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि डेगुएराटाइप पहली स्थायी फोटोग्राफ इमेज नहीं थी. 1826 में नाइसफोर ने हेलियोग्राफी के तौर पर पहले ज्ञात स्थायी इमेज को कै द किया था. 19 अगस्त को विश्व फोटो दिवस चुने जाने का मकसद व्यावहारिक फोटोग्राफिक प्रक्रिया डेगुएराटाइप का इसी दिन अस्तित्व में आना और फ्रांस सरकार द्वारा इसी दिन इसका पेटेंट खरीदना बताया गया है.
बचपन में शायद आपके मन में यह सवाल उठा होगा कि महात्मा गांधी, भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद, सुभाषचंद्र बोस, सरदार वल्लभभाई पटेल आदि सरीखे देशभक्तों व महापुरुषों की तसवीरें हमारे यहां मौजूद हैं, लेकिन उनसे कुछ सदी पूर्व पैदा हुए प्रमुख देशभक्तों या महापुरुषों की तसवीरें क्यों नहीं हैं. धीरे-धीरे आपको यह बात समझ में आ गयी होगी कि पूर्व में हमारे पास फोटो खींचने वाला कैमरा नहीं होने के चलते प्राचीनकाल के महापुरुषों की तसवीरें नहीं हैं.

फ़ोटोग्राफ़ी का योगदान

फ़ोटोग्राफ़ी का आविष्कार जहाँ संसार को एक-दूसरे के क़रीब लाया, वहीं एक-दूसरे को जानने, उनकी संस्कृति को समझने तथा इतिहास को समृद्ध बनाने में भी उसने बहुत बड़ी मदद की है। आज संसार के किसी दूरस्थ कोने में स्थित द्वीप के जनजीवन की सचित्र जानकारी बड़ी आसानी से प्राप्त होती है, तो इसमें फ़ोटोग्राफ़ी के योगदान को कम नहीं किया जा सकता। वैज्ञानिक तथा तकनीकी सफलता के साथ-साथ फ़ोटोग्राफ़ी ने भी आज बहुत तरक्की की है। आज व्यक्ति के पास ऐसे साधन मौजूद हैं, जिसमें सिर्फ बटन दबाने की देर है और मिनटों में अच्छी से अच्छी तस्वीर उसके हाथों में होती है। किंतु सिर्फ अच्छे साधन ही अच्छी तस्वीर प्राप्त करने की ग्यारंटी दे सकते, तो फिर मानव दिमाग का उपयोग क्यों करता? तकनीक चाहे जैसी तरक्की करे, उसके पीछे कहीं न कहीं दिमाग ही काम करता है। यही फ़र्क़ मानव को अन्य प्राणियों में श्रेष्ठ बनाता है। फ़ोटोग्राफ़ी में भी अच्छा दिमाग ही अच्छी तस्वीर प्राप्त करने के लिए जरूरी है।

अच्छा फ़ोटो
हमें आँखों से दिखाई देने वाले दृश्य को कैमरे की मदद से एक फ्रेम में बाँधना, प्रकाश व छाया, कैमरे की स्थिति, ठीक एक्सपोजर तथा उचित विषय का चुनाव ही एक अच्छे फ़ोटो को प्राप्त करने की पहली शर्त होती है। यही कारण है कि आज सभी के घरों में एक कैमरा होने के बाद भी अच्छे फ़ोटोग्राफ़र गिनती के ही हैं। अच्छा फ़ोटो अच्छा क्यों होता है, इसी सूत्र का ज्ञान किसी भी फ़ोटोग्राफ़र को सामान्य से विशिष्ट बनाने के लिए पर्याप्त होता है। प्रख्यात चित्रकार प्रभु जोशी का कहना है कि “हमें फ्रेम में क्या लेना है, इससे ज्यादा इस बात का ज्ञान जरूरी है कि हमें क्या-क्या छोड़ना है।” भारत के संभवतः सर्वश्रेष्ठ फ़ोटोग्राफ़र रघुराय के शब्दों में- “चित्र खींचने के लिए पहले से कोई तैयारी नहीं करता। मैं उसे उसके वास्तविक रूप में अचानक कैंडिड रूप में ही लेना पसंद करता हूँ। पर असल चित्र तकनीकी रूप में कितना ही अच्छा क्यों न हो, वह तब तक सर्वमान्य नहीं हो सकता, जब तक उसमें विचार नहीं है। एक अच्छी पेंटिंग या अच्छा चित्र वही है, जो मानवीय संवेदना को झकझोर दे। कहा भी जाता है कि एक चित्र हजार शब्दों के बराबर है।”[1]

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