दीपक ठाकुर
कोरोना काल मे जिस तरह की भूमिका निजी अस्पतालों की रही है वो अब संदेह के घेरे में नज़र आ रही है वैसे तो सोशल मीडिया पर तमाम तरह की वीडियो पहले से मौजूद है जिसमे निजी अस्पतालों पर लापरवाही करने का आरोप लगा है लेकिन राजधानी लखनऊ के चार बड़े अस्पतालों पर अब जिलाधिकारी की टेढ़ी नज़र हो चुकी है वो इसलिए कि एक तरफ जहां कोरोना से भारत मे मृत्यु दर दुनिया मे सबसे कम है लेकिन इन निजी अस्पतालों से कोरोना का एक भी मरीज़ ठीक नही हो पाया मतलब इन निजी अस्पतालों में जो भी कोरोना मरीज़ भर्ती हुआ उन सब मरीजों की मौत हो गई।
आपको बता दें कि जिलाधिकारी अभिषेक प्रकाश ने इस मामले को संजीदगी से लेते हुए लखनऊ के चरक अस्पताल,अपोलो अस्पताल,चन्दन अस्पताल और मेयो अस्पताल को चिन्हित कर इन पर कार्यवाई करने की बात कही है।आपको बता दें कि इन अस्पतालों में 48 मरीज़ भर्ती हुए थे जिनमें चरक में 10 मरीज़ थे जिनकी मौत हुई वही चंदन अस्पताल में 11 मरीज़ों की कोरोना से मौत हुई तो अपोलो अस्पताल में 17 और मेयो अस्पताल 10 मरीजों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा।
कोरोना से बचने के बावजूद भी इसकी चपेट में आने वाला मरीज़ निजी अस्पतालों का रुख इसलिए करता है क्योंकि उसे लगता है वहां पैसा तो खर्च होगा लेकिन जान बच जाएगी लेकिन ऐसे निजी अस्पताल अपने निजी स्वार्थ को सर्वोपरि मानते हुए पैसा तो खूब कमाते हैं पर मरीजों की जान बचाने में उनकी कोई दिलचस्पी नही रहती ऐसा इन आंकड़ों को देख कर आसानी से समझा जा सकता है।लेकिन अब लखनऊ के इन चार अस्पतालों पर महामारी अधिनियम के तहत कार्यवाई करने की बात खुद जिलाधिकारी अभिषेक प्रकाश ने कही है।