28 C
Lucknow
Thursday, May 15, 2025

श्रीनगर उपचुनावः कम वोट के पीछे है ‘दोहरा खेल’


जम्मू-कश्मीर में पिछले साल हुई हिंसा के दौरान हुई मौतों के खिलाफ प्रतिस्पर्धी अलगाववादी राजनीति और गुस्से का असर रविवार को हुए श्रीनगर संसदीय उपचुनाव में देखने को मिला जहां बड़े पैमाने पर हिंसा के साथ वोटिंग भी महज 6.5 प्रतिशत हो पाई। इसमें पुलिस की भूमिका भी शामिल है। श्रीनगर लोकसभा क्षेत्र पारंपरिक रूप से नैशनल कॉन्फ्रेंस पार्टी का गढ़ रहा है। रविवार को यहां भारी भीड़ द्वारा की गई हिंसा में आठ चुनाव-विरोधी प्रदर्शनकारियों की मौत हो गई। नतीजा यह हुआ कि महज 6.5 प्रतिशत लोगों ने ही वोट डाले।

इसके विपरीत इस सीट पर सबसे ज्यादा वोट 1984 के चुनाव में डाले गए थे जब 73 प्रतिशत वोटरों ने वोटिंग की थी। बाद में 1990 में जब घाटी में हिंसा शुरू हुई तो श्रीनगर का वोटर सैयद अली शाह गिलानी, मिरवाइज उमर फारुक, यासीन मलिक जैसे और अलगाववादी नेताओं की तरफ देखने लगा। तब से वोटिंग प्रतिशत गिरना शुरू हुआ। 1999 के लोकसभा चुनाव में श्रीनगर में केवल 12 प्रतिश वोट पड़े थे।


रविवार को हुई वोटिंग अभी तक की सबसे कम वोटिंग थी। जम्मू-कश्मीर पुलिस के सूत्रों का कहना है कि ‘पुलिस की तरफ से कोई रुकावट नहीं थी’। एक पुलिस अधिकारी ने बताया, ‘यह बात तो सामान्य रूप से समझने की है कि भीड़ द्वारा हिंसा करने और आतंकी हमलों के जरिए पोलिंग रोकने के प्रयास किए जाएंगे जैसा पिछले साल हुआ था। लेकिन पुलिस ने उन पत्थरबाजों और दंगाइयों को हिरासत में नहीं लिया जो घाटी में सैकड़ों की संख्या में मौजूद हैं। उन्होंने (पुलिस) केवल 29 दंगाइयों को पकड़ा।’

पुलिस के एक सूत्र ने बताया जिन पत्थरबाजों को पिछले साल पकड़ा गया था उन्हें नैशनल कॉन्फ्रेंस और पीडीपी दोनों की तरफ से की गई ‘तुष्टीकरण की राजनीति’ की वजह से छोड़ना पड़ा। सूत्र ने बताया, ‘अलगावदी राजनीति के प्रति उन दोनों (NC और PDP) का रवैया नरम है और वोट के लिए अलगाववादियों को शांत करने की कोशिश कर रहे हैं। नैशनल कॉन्फ्रेंस के फारुक अब्दुल्ला ने पत्थरबाजों को स्वतंत्रता सेनानी की तरह पेश किया। अगर पीडीपी विपक्ष में होती तो वह भी यही करती।’

बता दें कि रविवार को श्रीनगर, बडगाम और गांदेरबल जिलों में 100 से ज्यादा पोलिंग स्टेशन पर दंगाइयों ने हमला किया था। एक वोटर ने बताया कि कई पत्थरबाजों का संबंध पीडीपी और एनसी से था। उसने कहा, ‘वे ऐसे लोग हैं जो अलगाववादियों के हाथों में भी खेलते हैं। लेकिन चुनाव के दौरान मुख्य राजनीतिक पार्टिया कम वोटिंग चाहती हैं ताकि उनके प्रतिबद्ध कैडर ही वोट डाल सकें।’

Latest news
- Advertisement -spot_img
Related news
- Advertisement -spot_img

कोई जवाब दें

कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें!
कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें