नई दिल्ली। लालू प्रसाद यादव को सीबीआई की विशेष अदालत ने शनिवार को साढ़े तीन वर्षों की सजा सुना दी। उन्हें कोर्ट ने पांच लाख का जुर्माना भी लगाया है। लालू को अब रांची की बिरसा मुंडा सेंट्रल जेल में रहना होगा। कोर्ट ने वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए सजा का ऐलान किया है। कोर्ट के इस फैसले के बाद लालू की परेशानियां बढ़ गई हैं। ये परेशानी सिर्फ इसलिए नहीं है कि उन्हें अब जेल जाना होगा। बल्कि परेशानी इसलिए बढ़ी है क्योंकि इसमें एक तकनीकी पेच फंस गया है।
ये है तकनीकी पेंच
आपको बता दें कि यदि लालू प्रसाद यादव को तीन या इससे कम वर्ष की सजा होती तो वह उसी वक्त जमानत पा सकते थे। लेकिन क्योंकि अब सजा की मियाद साढ़े तीन वर्ष तय की गई है लिहाजा अब लालू प्रसाद यादव को जमानत मिलने में परेशानी होगी। इसके लिए अब लालू प्रसाद यादव को कानूनी प्रक्रिया पूरी करते हुए कोर्ट का दरवाजा खटखटाना होगा, जिसमें लंबा समय भी लग सकता है। यहां पर कहा जा सकता है कि बीते दिनों जो गुहार लालू प्रसाद यादव ने कोर्ट से लगाई थी वह गुहार उनके किसी काम नहीं आई।
सजा के ऐलान में इसलिए हुआ विलंब
आपको यहां ये भी बता दें कि बीते तीन दिनों से लालू की सजा पर गहमागहमी चल रही थी, लेकिन उनका नंबर पीछे होने की वजह से सजा के ऐलान में इतना विलंब हुआ। अब जबकि सजा का ऐलान हो चुका है तो अब उन्हें जमानत के लिए हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाना होगा। यह प्रक्रिया इसलिए भी लंबी है क्योंकि यहां पर याचिका दायर करने से लेकर इसका नंबर आने और सुनवाई तक हर किसी को लंबी प्रक्रिया से गुजरना होता है। यहां पर किसी के विशेष व्यक्ति के होने से कोई फर्क नहीं पड़ता है।
जेल में गुजारने पड़ सकते हैं कुछ माह से साल
यहां पर एक बात और दिलचस्प है और वो ये है कि सजा के ऐलान के बाद लालू को मुमकिन है कि अब कुछ महीने से साल तक जेल में ही गुजारना हो। यदि हाईकोर्ट से उनकी जमानत याचिका खारिज हो जाती है तो फिर उन्हें सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाना होगा। यह जमानत पाने का एक आखिरी रास्ता होता है। लिहाजा अब उनका जल्द बाहर आना काफी मुश्किल दिखाई देता है।
पहले भी हो चुकी है सजा
शनिवार को सीबीआई की विेशेष अदालत ने लालू को जिस अपराध के लिए सजा सुनाई है वह चारा घोटाले से ही जुड़ा है। यह मामला देवघर ट्रेजरी से 1990-94 के बीच 84.5 लाख रुपये की अवैध निकासी से संबंधित है। इस मामले में 16 आरोपियों को 23 दिसंबर को कोर्ट ने दोषी ठहराया था, जबकि बिहार के पूर्व सीएम जगन्नाथ मिश्रा समेत छह को बरी कर दिया था। इससे पहले चाईबासा मामले में भी कोर्ट उन्हें सजा सुना चुका है। इसके बाद वह जमानत पर जेल से छूटे थे।