सीतापुर-अनूप पाण्डेय,आशुतोष अवस्थी/NOI-उत्तरप्रदेश जनपद सीतापुर के बिसवा-साहित्य सरोकारों को समर्पित संस्था साहित्य सृजन मंच,बिसवां द्वारा साहित्यकार संदीप सरस के संयोजन में एक काव्य समागम का आयोजन समाजसेवी गंगास्वरूप मिश्रजी के शंकरगंज आवास पर किया गया। जिस का संचालन सुकवि अरविंद सिंह ‘मधुप’ ने किया।
यह कार्यक्रम दो चरणों में समायोजित रहा।प्रथम चरण में
लखीमपुर से आए हुए चर्चित सुकवि ज्ञानेन्द्र वत्सल का सशक्त एकल काव्य पाठ संयोजित किया गया।उन्होंने अपने बेहतरीन गीतों की सुमधुर प्रस्तुति से मंत्रमुग्ध कर दिया।वे कवि धर्म के निर्वाह के प्रति सचेष्ट करते हैं-
ऋतुओं का रथ हांको क्रमशः ओ ! रसराज कहाने वाले।
कवि के कितने धर्म निभाये युग पूँछेंगे आने वाले।अपने अगले ही गीत में उन की रचनाधर्मिता अध्यात्म से लबरेज नजर आती है-तन से वैराग्य है मन से सन्यास है।हार से जीत का एक आभास है।आके पढिये हमारे खुले हैं नयन हारने जीतने का उपन्यास है।
कार्यक्रम के दूसरे चरण में जनपद लखीमपुर के धौरहरा क्षेत्र से आए युवा कवि शोभित तिवारी सूर्य और हैदरगढ़ बाराबंकी से आए कवि दिलीप सिंह दीपक उपस्थिति में एक काव्य गोष्ठी का संयोजन किया गया।
साहित्यकार संदीप सरस के मुक्तकों के तेवर जीवन के सैद्धांतिक मूल्यों को रेखांकित करते दिखे-
अधिकार नहीं मांगे, कर्तव्य नहीं भूले।
सद्मार्ग नहीं छोड़ा, गन्तव्य नहीं भूले।
निरपेक्ष भावना से,हम जीवन जीते हैं,
निष्काम साधना के ध्यातव्य नहीं भूले।
रामदास गुप्त जी अपनी रचना में बेहद प्रभावी रहे –
प्रेम कोई दिखाने की वस्तु नहीं,जो सड़क पर प्रदर्शित किया जाएगा।
प्रेम दो आत्माओं का सच्चा मिलन,
जिसको कोई जुदा ही न कर पायेगा।लखीमपुर धौरहरा से आए युवा कवि शोभित तिवारी ‘सूर्य’ने अपने मार्मिक मुक्तक से श्रोताओं को बेहद प्रभावित किया-
अगर पतझड़ का हो मौसम,नवल मधुमास हैं पापा।
हमारी जिंदगी का हर मधुर अहसास हैं पापा।।
बताने के लिए ,शोभित यहाँ रिश्ते बहुत से हैं,
हमारा भाग्य है अच्छा हमारे पास हैं पापा।।
हैदरगढ़ बाराबंकी के दिलीप सिंह ‘दीपक’ का व्यंग्य कटाक्ष कमतर ना रहा-
सड़क बीच गड्ढा है कोई,या गड्ढे में बनी सड़क है कहना मुश्किल हमको लगता,
सड़क मार्ग ही यहाँ नरक है।सुकवि अरविंद सिंह मधुप,अपने सम्मोहक मुक्तक के माध्यम से अपनी अभिव्यक्ति में सफल रहे-
अंतर्मन की करुण वेदना, जिस दिन शोर मचाएगी।
चाहे जो कोशिश कर लो तुम,रोके रुक ना पाएगी।
सारे बंधन तोड़ के एक दिन,सरिता बहती आएगी।
अपना सब अस्तित्व मिटाकर, सागर में मिल जाएगी।
कार्यक्रम में डॉ शैलेष वीर,संदीप सरस, रामकुमार सुरत,रामदास गुप्त,
अरविंद मधुप, नैमिष सिंह, धर्मेंद्र त्रिपाठी,आलोक यादव, संदीप सरल सहित अन्यान्य कवि, बुद्धिजीवियों ने अपनी सहभागिता दी।
कृपया साहित्य सृजन मंच द्वारा आयोजित काव्य समरोह ।