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Thursday, November 7, 2024

सियासत की बिसात में लक्ष्मणपुरी…

इरफान शाहिद:NOI।

हमारा देश आज़ाद हुए काफी अरसा हो चुका है हमने अंग्रेजों के चुंगल से अपने हिन्दोस्तान को तो आज़ाद करा लिया पर अभी भी हमारे देश की सियासत निर्जीव वस्तुओं को आज़ादी दिलाने का संघर्ष करती नज़र आ रही है।जो हो गया उसे और बेहतर करने के बजाए नेता नगरी ये मान रही है कि जो हुआ वो किसी के साथ छल और किसी के बाहुबल का नतीजा था जो अब बर्दाश्त नही किया जाएगा।

हालिया उदाहरण आपको नवाबो के शहर लखनऊ का देता हूँ जो पहले लक्षमणपूरी के नाम से जाना जाता था ऐसा नवाबों के दौर से पहले होता था ये बताया जा रहा है हिन्दू धर्म के अनुसार मान्यता ये भी है कि भगवान राम के अनुज लक्ष्मण जी लखनऊ में जिस जगह विश्राम के लिए रुके थे उसी जगह पर मुगलों ने एक मस्जिद का निर्माण कर लिया और नाम दे दिया टीले वाली मस्ज़िद जबकि वो लक्ष्मण टीला था।

खैर जो था और जो हमे मिला इससे आम जनता को कोई दिक्कत नही थी यही वजह रही कि सभी ने सबकुछ सहर्ष स्वीकार करते हुए अपना जीवन यापन प्रारंभ कर दिया।लेकिन वोट बैंक की राजनीती हर उन पहलुओं को खंगालती नज़र आई जहां से उनका और उनकी पार्टी का भला हो सके।अब एक दल ने मांग की है कि टीले वाली मस्ज़िद के बाहर प्रभु लक्ष्मण जी की भव्य प्रतिमा होनी चाहिए क्योंकि ये जगह उन्ही के नाम से जानी जाती है।

वही दूसरा पक्ष इसके विरोध में खड़ा है कि ऐसा हुआ तो मस्ज़िद में नमाज़ अदा करना ही बन्द हो जाएगा फिर क्या था यही मुद्दा राजनीती से ऊपर उठकर आस्था तक पहुंचने लगा लोगों में आस्था भड़का के ये दल अपनी अपनी सियासी गोट बैठाने की पूरी कोशिश भी करेंगे।हालांकि आपसी रज़ामन्दी से समस्या सुलझ सकती है पर राजनीति ऐसा होने नही देगी धीरे धीरे ये मामला चुनावी मुद्दा बनेगा जिससे किसी पार्टी को लाभ होगा तो कोई हताश होगा पर सवाल यही है कि ऐसे मुद्दों से जनता को क्या मिलेगा??

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