नई दिल्ली। यूपीए सरकार की महत्वाकांक्षी महात्मा गांधी रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) में धांधली की पोल एक बार फिर खुल गई है। भारत के महानियंत्रक और लेखापरीक्षक (सीएजी) द्वारा ऑडिट में 13 हजार करोड़ रुपये की गड़बड़ी का खुलासा किया गया है।
मंगलवार को संसद के पटल पर रखी गई इस रिपोर्ट में सीएजी ने मनरेगा के परियोजनाओं के पूरा होने और इसके आवंटन में गड़बड़ी पाई है। रिपोर्ट में कहा गया है कि परियोजनाओं में 6500 करोड़ रुपये सही तरीके से खर्च नहीं किए गए।
सीएजी ने 2007-12 के बीच 14 राज्यों में खर्च की गई रकम की जांच की। इसमें उसने पाया कि पांच साल में चार हजार करोड़ रुपये खर्च करने के लिए बावजूद कई परियोजनाओं पूरी नहीं हुई।
एक न्यूज चैनल के अनुसार, 14 राज्यों में एक करोड़ 29 लाख परियोजनाओं के लिए 1.26 लाख रुपये आवंटित किए गए, लेकिन इनमें से 30 फीसद ही पूरी हो सकी। साथ ही रिपोर्ट में कहा गया है कि मनरेगा के तहत न आने वाली परियोजनाओं पर भी मरम्मत के नाम पर 2252 करोड़ रुपये खर्च कर दिए गए।
रिपोर्ट के कुछ और महत्वपूर्ण तथ्य :
-बिहार, महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश में रहने वाले 46 फीसद गरीब लोगों पर फंड का केवल 20 फीसद ही खर्च किया गया।
-कर्नाटक में सबसे ज्यादा 1600 से ज्यादा फर्जी मजदूर पाए गए जिनके कागज पर नाम तो थे, लेकिन उनका कोई वजूद नहीं था। कुल आठ राज्यों में 1932 फर्जी मजदूर पाए गए।
-फंड की सबसे ज्यादा हेराफेरी असम में पाई गई।
-12 हजार से ज्यादा घरों में जॉब कार्ड जारी नहीं किया गया।
-मजदूरों को भुगतान में देरी हुई, लेकिन उन्हें मुआवजा राशि नहीं दी गई।
-54 फीसद ग्राम पंचायतों द्वारा रिकॉर्ड का रखरखाव गलत पाया गया।
-रिपोर्ट में पाया गया कि कई जगह बीडीओ ने अपने नामों से चेक जारी किए।
-सीएजी ने केंद्र द्वारा जारी निगरानी को भी असंतोषजनक पाया।
गौरतलब है कि 2006 में ग्रामीणों को साल में 100 दिनों का निश्चित रोजगार देने के लिए इस परियोजना की शुरुआत की गई थी, लेकिन इसमें कई राज्यों धांधली के आरोप शुरुआत से ही लगते रहे हैं।