सीतापुर-अनूप पाण्डेय, अंकुर तिवारी /NOi-उत्तरप्रदेश जनपद सीतापुर के विकास खण्ड रेउसा का गाव खुरवलिया मेजिन हाथों में कलम कान्धो में स्कूल का बस्ता चेहरे पर मासूम सी मुस्कान होनी चाहिए थी उनके सर पर गरीबी लाचारी और भूख का बोझ है हम आपको कुछ ऐसी एक तस्वीर दिखाने जा रहे हैं जिसके बाद सरकार की बाल मजदूरी पर बड़ी-बड़ी बातें झूठी लगने लगी यह बच्चा किसी दूसरी दुनिया में नहीं रहता बल्कि उसी दुनिया में रहता है जिसमें बड़े-बड़े नेता रहते हैं और बड़े बड़े अधिकारी भी रहते हैं जो सब कुछ देख कर भी अनदेखा कर दिया जाता है इसके पास बड़े बड़े फैसले लेने की तो समझ है लेकिन बाल मजदूरों की उस मजबूरी समझने की समझ नहीं है जो कि छोटी ही उम्र में अपना और अपने परिवार का भूखे पेट के लिए सब करने पर मजबूर करती है आगे बताते चलें कि यह सब उस बालक की कहानी हैं जो कि अपना और अपने परिवार के लिए दूसरों के जूते चप्पलों की मरम्मत करके उनके भूखे पेट के लिए यह काम करने को मजबूर है जब हम ने बच्चे से इसका कारण पूछा तो बताया कि हमारे पास ना ही तो खेती करने के लिए खेत है और ना ही कोई कमाने वाला मेरे माता पिता की तबीयत खराब होने से मैं 2 सालों से उनकी जिम्मेदारी मेरे पर आ गई हम सात छोटे भाई हैं और बुजुर्ग माता-पिता हैं बच्चे का नाम लव कुश पुत्र रामप्रकाश उम्र 12 साल की है जो कि विधानसभा सेउता के खुरवलिया गांव का रहने वाला बालक है जो कि जिस उम्र में बच्चे के हाथों में कलम और किताब होनी चाहिए उसमें उनके हाथों में कहीं झाड़ू है तो कहीं चाय की केतली तो कहीं परिवार की जिम्मेदारी आ जाती है जिससे कि उनका बचपन खराब हो रहा है बल्कि सरकार और संवैधानिक बाल श्रम कानूनों के अनुसार 14 साल से कम आयु वाले बच्चों से काम कराना कानूनन अपराध माना गया है लेकिन यहां पर ना तो लोगों में जागरूकता है और ना ही प्रशासन सख्त है जिसके कारण का बचपन खोता नजर आ रहा है।