प्रियांशू
जिनमें भारत की ऐसी पहली महिला प्रधानमंत्री बनने
के सारे गुण और अवगुण मौजूद थे, जिनका इंदिरा गांधी की तरह पॉलिटिकल बैकग्राउंड नहीं था।
जिन्होंने शून्य से शुरू किया। सजा सजाया मंच नहीं मिला। और जो भी अर्जित किया, खुद उनका था।
जिन्होंने वीके मेनन के बाद नीरस हो चुके विदेश मंत्री के पद में विरोधियों तक की दिलचस्पी पैदा कर दी।
जिन्होंने तीखी हो चुकी भारतीय राजनीति में अंत तक संयम नहीं खोया। उन्हीं सुषमा स्वराज की आज पहली बरसी है।
मौजूदा भारत में प्रधानमंत्री बनने का गुण लिए हर गली में एक नेता टहलता मिल जाएगा। नहीं मिलेगा तो विपक्ष को लीड करने वाला कोई एक भी।
विलुप्त होते जा रहे अपोजिशन को आज सबसे ज्यादा सुषमा जैसी तेवरों वाली नेता की जरूरत है।
जो हथकड़ियों में जकड़ी जॉर्ज फर्नांडिस की तरह सुधा भारद्वाज या वरवरा राव की तस्वीर लहराकर प्रचार करती घूमें।
जो सत्ता से आंख मिलाकर कहने का साहस रखे, ‘जेल का फाटक टूटेगा, जॉर्ज हमारा छूटेगा।’
यह लेखक निजी विचार हैं। वह दिल्ली में पत्रकारिकता करते हैं।