दीपक ठाकुर
किसी भी जिले का जिलाधिकारी हर उस घटना का जिम्मेवार होता है जो उसके जिले में घटी हो उसका दायित्व होता है कि वो उस घटना का ना केवल संज्ञान ले बल्कि उसका समाधान भी करे जिससे जनता में उसके प्रति विश्वास हो लेकिन यूपी के हाथरस में जो हुआ उसको देख कर यही लगता है कि वहां के डीएम का जनता के प्रति कोई स्नेह नही है उसे बस अपनी नौकरी बचाने की चिंता है इसी वजह से वहां सरकारी नाकामी को छिपाने का डीएम साहब ने भरसक प्रयास किया।
जो खबर हाथरस से आ रही है वो इसी तरफ इशारा कर रही है कि वहां के डीएम ने वहां के पीड़ित परिवार के साथ किसी तरह की मानवता नही दिखाई बल्कि उनको डरा धमका कर मीडिया के सामने कुछ भी बोलने से रोका और तो और पूरे गांव की नाकाबंदी कर 24 घण्टे से भी अधिक समय के लिए मीडिया का भी गांव में प्रवेश बन्द कर दिया गया था।लेकिन आज जब मीडिया पीड़ित परिवार से मिली तो उनका सीधा आरोप वहां के डीएम पर ही था पीड़ित परिवार ने बताया कि डीएम साहब ने उनके साथ किसी तरह की सहानभूति नही दिखाई बल्कि ये कहा कि मीडिया से दूर रहो वो तो दो दिन यहां रहेगी और हम हमेशा के लिए हैं दूसरा पीड़ित परिवार का कहना था कि डेड बॉडी इसलिए नही दी गई क्योंकि पोस्टमार्टम के बाद बॉडी देखने लायक बची ही नही थी उन्होंने तो यहां तक इशारों इशारों में बोल दिया कि अगर कोरोना से लड़की मरती तो मुवावजा भी ना मिलता यानी जो मिल रहा है उसे लेकर शांत रहो।
पीड़ित परिवार अभी भी न्याय की मांग कर रहा है उसने अपनी बेटी खोई है जिसका दर्द उसे ताउम्र रहेगा लेकिन सरकारी विभाग उसपर दबाव बनाने में जुटा है कोई कहता है कि बलात्कार हुआ ही नही था तो कोई मुह ना खोलने की धमकी दे रहा है योगी सरकार ने जो अभी तक वहां के पुलिस प्रशासन पे कार्यवाही की है वो तो सही है लेकिन वहां के डीएम पर सरकारी इतनी मेहरबान क्यों है ये सवाल सभी को अखर रहा है अब देखना ये है कि हाथरस के डीएम से सरकार अपना हाथ कब हटाएगी।
आपको बता दे कि इसी बीच ये खबर भी आ रही है कि हाथरस के SP विक्रांत वीर को सस्पेंड किए जाने और डीएम प्रवीण कुमार पर कोई कार्रवाई न होने से यूपी के नए आईपीएस अफ़सरों में नाराज़गी है।अपने एसोसिएशन की तरफ से एक पत्र लिख कर कहा कि जब भी कुछ होता है तो पुलिस अफ़सरों को ही बलि का बकरा बनाया जाता है,जबकि हाथरस मामले में सारे फ़ैसले डीएम ने किए हैं।