नई दिल्ली। राइट टू प्राइवेसी यानी निजता का अधिकार मौलिक अधिकार है या नहीं, इसपर सुप्रीम कोर्ट ने आज इसपर ऐतिहासिक फैसला सुना दिया है। कोर्ट ने कहा कि निजता का अधिकार मौलिक अधिकार है और यह संविधान के आर्टिकल 21 (जीने के अधिकार) के तहत आता है।
इस ऐतिहासिक फैसले का प्रभाव देश के 134 करोड़ लोगों के जीवन पर पड़ेगा। सुप्रीम कोर्ट की 9 जजों की संवैधानिक बेंच ने सर्वसम्मति से यह फैसला किया। कोर्ट ने 1954 में 8 जजों की संवैधानिक बेंच की एमपी शर्मा केस और 1961 में 6 जजों की बेंच के खड्ग सिंह केस में दिए फैसले को पलट दिया।
इस फैसले की मुख्य बातें –
कोर्ट ने निजता को मौलिक अधिकार माना है। नौ जजों की बेंच ने सर्वसम्मति से ये फैसला लिया है।
ये बेंच आधार कार्ड और सोशल मीडिया में दर्ज निजी जानकारियों के डेटा बैंक के बारे में फैसला लेगी।
कोर्ट ने 1954 में 8 जजों की संवैधानिक बेंच की एमपी शर्मा केस और 1961 में 6 जजों की बेंच के खड्ग सिंह केस में दिए फैसले को पलट दिया।
याचिकाकर्ता की मांग थी कि संविधान के अन्य मौलिक अधिकारों की तरह ही निजता के अधिकार को भी दर्जा मिले।
आधार का मामला इस केस से अप्रत्यक्ष तौर पर जुड़ा हुआ था। इस फैसले से आधार की किस्मत नहीं तय होगी। आधार पर अलग से सुनवाई होगी।
चीफ जस्टिस जेएस खेहर, जस्टिस चेलामेश्वर, जस्टिस एसए बोबडे, जस्टिस आरके अग्रवाल, जस्टिस आरएफ नरीमन, जस्टिस एएम सप्रे, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस एसके कौल, जस्टिस अब्दुल नजीर ने ये फैसला किया है।
सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार ने इस मसले पर सुनवाई के दौरान अपना पक्ष रखा था। केंद्र का पक्ष रखते हुए एडिशनल सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने दलील दी थी कि आज का दौर डिजिटल है, जिसमें राइट टू प्राइवेसी जैसा कुछ नहीं बचा है।