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Tuesday, February 18, 2025

​इंजीनियरिंग की पढ़ाई बीच में छोड़कर कवि बने हैं कुमार विश्वास की खास है पहचान, शुरुआत से अबतक की हर एक बात


आम आदमी पार्टी में दो फाड़ साफ दिखाई पड़ रही है. एक गुट है पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल का, वहीं दूसरा गुट है पार्टी के स्टार प्रचारक और संस्थापक सदस्य कुमार विश्वास का.

हालांकि कुमार विश्वास को पार्टी को खोना नहीं चाहती इसलिए अरविंद केजरीवाल के तेवर हमेशा से विश्वास पर नरम रहे हैं. कारण भी खास है, कुमार विश्वास जितनी फैन फालोइंग वाले कवि या नेता शायद ही देखने को मिलते हैं. एक नेता के अलावा एक कवि के तौर पर विश्वास बेहद मशहूर हैं. कहा ये भी जाता है कि हिंदी के कवियों का कारपोरेटिकरण करने के पुरोधा कुमार विश्वास ही हैं. आइए आपको बताते हैं कुमार के बचपन से अब तक की खास बातें-

पिता डिग्री कॉलेज प्रवक्ता थे

कुमार विश्वास यूपी के गाजियाबाद के पिलखुआ कस्बे के रहने वाले हैं. युवा से दिखने वाले विश्वास 1970 की पैदाइश हैं. विश्वास के पिता डॉ. चंद्रपाल शर्मा एख डिग्री कॉलेज में प्रवक्ता हैं. विश्वास ने अपनी शुरुआती पढ़ाई राजपूताना रेजिमेंट इंटर कॉलेज से की है.

इंजीनियरिंग बीच में छोड़कर निकल लिए थे विश्वास

विश्वास के पिता चाहते थे कि वो अपने बड़े भाई की तरह इंजीनियर बने. विश्वास का इंजीनियरिंग कॉलेज में दाखिला भी कराया गया. लेकिन मशीनों से वो प्यार नहीं कर पाया. कॉलेज के जमाने से ही वो एक प्रखर वक्ता थे. साथ ही कवितांओं में उनकी खास दिलचस्पी थी इसलिए विश्वास ने हिंदी में बीए करने की ठानी. उनके पिता इस कदर नाराज थे की फीस कॉलेज की फीस विश्वास को खुद ही जुटाने का फरमान सुना दिया था.

राजस्थान में प्रवक्ता रह चुके हैं विश्वास

विश्वास ने हिंदी साहित्य में पोस्ट ग्रेजुएशन किया. इसके बाद उन्होंने ‘कौरवी लोकगीतों में लोकचेतना’ विषय पर पीएचडी की. इसके बाद 1994 में राजस्थान के एक डिग्री कॉलेज में प्रवक्ता के रूप में उन्‍होंने अपना करियर शुरू किया. लेकिन कविताओं में रूचि उनकी हमेशा से बनी रही. बाद में कुमार विश्वास की दो पुस्तकें प्रकाशित हुई – ‘इक पगली लड़की के बिन’ (1996) और ‘कोई दीवाना कहता है’ (2007 और 2010 ). दोनों ही किताबें बेहद मशहूर रही हैं .

केजरीवाल से मुलाकात, सिसोदिया से दोस्ती

दिल्ली के सीएम केजरीवाल को विश्वास अन्ना आंदोलन के बहुत पहले साल 2006 से ही जानते हैं. आपको बता दें कि दिल्ली के डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया और कुमार विश्वास बचपन के दोस्त है और उन्होनें गाजियाबाद के पिलखुवां में एक ही स्कूल में पढ़ाई की थी. साल 2010 में जब अन्ना आंदोलन की नींव तैयार हो रही थी तब से ही ये तीनों एक साथ आंदोलन के लिए जुटे हुए हैं.

अमेठी से लड़ा चुनाव, केजरीवाल से मतभेद

साल 2014 के लोकसभा चुनावों में विश्वास अमेठी से राहुल गांधी के खिलाफ लड़े. इस चुनाव में अरविंद केजरीवाल समेत आम आदमी पार्टी के कई नेताओं ने विश्वास का राहुल के खिलाफ कुछ खास प्रचार नहीं किया. नतीजा ये हुआ कि विश्वास चुनाव हार गए. बाद में विश्वास ने खुलेआम अपनी नाराजगी जताई थी. एमसीडी चुनाव समेत ऐसे कई मौके आए हैं जब केजरीवाल, विश्वास के बीच अविश्वास देखने को मिला है.

हिंदी कवियों में अलग है पहचान

हिंदी के कवियों में विश्वास की खास पहचान है. विश्वास की लोकप्रियता में अन्ना आंदोलन का खास योगदान हैं जहां इससे पहले विश्वास कवि सम्मेलन में भाग लेने के महज 40 से 50 हजार ही लिया करते थे अब विश्वास 3 घंटे के शो के लिए 4-4 लाख रुपये तक लिया करते हैं ऐसा कोई भी दूसरा हिंदी का कवि सोच भी नहीं सकता है. ये साख उन्होंने अपने कारपोरेटिकरण से भी कमाया है इसके अलावा उनका अपना अंदाज तो है ही जुदा. कहा जाता है कि किसी कवि सम्मेलन में विश्वास जब जाते हैं तो नए जमाने की पहचान एपल मैकबुक वो इस्तेमाल किया करते हैं. साथ ही ब्रांडिंग के लिए उन्होंने खुद का ब्रांड मैनेजर भी रखा है.

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