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Tuesday, December 10, 2024

​इतनी जल्दी हाशिम अंसारी को भूल गई अयोध्या

अयोध्या. मौत ने गुमनाम कर दिया, लेकिन इतनी जल्दी…. यह उम्मीद नहीं थी। साठ बरस तक राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद का मुकदमा लडऩे वाले हाशिम अंसारी को उनकी अपनी अयोध्या ही एक बरस में भूल गई। पहली बरसी पर कोई कब्र पर दो फूल चढ़ाने या परिवार को ढांढस बंधाने नहीं पहुंचा। वे लोग भी लापता थे, जिन्होंने हाशिम अंसारी के जरिए राजनीति चमकाई और ऐसे लोग भी नजर नहीं आए, जोकि हाशिम अंसारी को उनके आखिरी वक्त में सांप्रदायिक सौहाद्र्र की मिसाल बताते थे। बातचीत के जरिए मंदिर-मस्जिद मुद्दा सुलझाने की बात कहने के बाद हाशिम अंसारी अयोध्या के दुलारे बन गए थे। अफसोस… ऐसे शख्स को दुनिया ने 365 दिन में गुमनाम कर दिया। बीते दिवस उनकी पहली बरसी पर पैतृक घर में छोटा कार्यक्रम हुआ, जहां परिजन और मोहल्ले के चंद लोग ही पहुंचे। 

साठ साल तक लड़ते रहे थे बाबरी मस्जिद के लिए हाशिम

20 जुलाई 2017 की सुबह 5.35 बजे दुनिया को अलविदा कहने वाले हाशिम अंसारी ने 1949 में राम जन्मभूमि के मसले पर मुकदमा दर्ज कराया था। हाशिम के मुताबिक विवादित परिसर में इसी वक्त देव मूर्तियों की स्थापना हुई थी। वर्ष 1975 में हाशिम को आपातकाल के दौर में गिरफ्तार भी किया गया और वह आठ महीने जेल में रहे। इसके बाद हाशिम ने विवादित स्थल को लेकर अपनी कानून जंग को धार देना शुरू किया तो दुनिया में चर्चित होने लगे। राममंदिर आंदोलन के समय हाशिम अंसारी दुनिया की मीडिया में छाए रहते थे। जिंदगी के अंतिम दौर में हाशिम ने खुद को कमजोर देखकर इच्छा जताई थी कि अंतिम सांस लेने से पहले राम जन्मभूमि का मसला हल कर लिया जाए। हाशिम ने इस विवादित मुद्दे को बातचीत के जरिए हल करने का प्रस्ताव भी रखा। 

बातचीत के प्रस्ताव के बाद कट्टरपंथियों के निशाने पर आए हाशिम

राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद मुद्दा बातचीत के जरिए सुलझाने की बात कहने के बाद हाशिम अंसारी कट्टरपंथियों के निशाने पर आ गए। मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने उन्हें चेतावनी देते हुए कहा था कि बाबरी मस्जिद का मसला उनका निजी मुद्दा नहीं, बल्कि बिरादरी और धर्म से जुड़ा विषय है, इसलिए खामोश रहें। ऐसी तमाम अन्य चेतावनी के बावजूद हाशिम अंसारी अदालत से बाहर मामला सुलझाने की कोशिश करते रहे। नतीजा यह हुआ कि वह अयोध्या में सांप्रदायिक एकता और सौहाद्र्र की मिसाल बन गए। अखाड़ा परिषद के तत्कालीन अध्यक्ष महंत ज्ञानदास के साथ उन्होंने सुलह समझौते की मुहिम भी छेड़ी। हाशिम अक्सर कहते थे कि अब रामलला को कैद से मुक्त होना चाहिए। हाशिम के मौत के बाद महंत ज्ञानदास और इलाहाबाद की बाघम्बरी पीठ के महंत नरेन्द्र गिरि ने अंसारी की इस मुहिम को जारी रखने की बात कही, लेकिन कदमन नहीं आगे बढ़ाए।

पहली बरसी पर नेता, संत-महंत और मौलाना नजर नहीं आए

हाशिम के प्रयासों को सराहनीय बताने वाले अयोध्या और देश के तमाम नेता पहली बरसी पर हाशिम के नाम दो फूल चढ़ाने भी नहीं पहुंचे। हाशिम के मुकदमे को लेकर राजनीति चमकाने वाले तथाकथित धर्मनिरपेक्ष नेता और स्थानीय पूर्व सांसद-विधायक भी हाशिम की कब्र तक नहीं पहुंचे। हाशिम के साथ बातचीत के जरिए मंदिर-मस्जिद विवाद सुलझाने की कोशिश में जुटे रहे संत-महंत भी बरसी के कार्यक्रम से दूर रहे। हाशिम के पुत्र इकबाल अंसारी ने अपने घर पर बरसी का रस्म आयोजन किया। इस कार्यक्रम में रिश्तेदारों के साथ-साथ मोहल्ले ेक चंद लोग ही शामिल हुए। कुल मिलाकर हाशिम की अयोध्या के लोग भी उन्हें पहली बरसी पर याद करने नहीं पहुंचे। 

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