लखनऊ,इरफ़ान शाहिद,न्यूज़ वन इंडिया। कहते है जो बीत गई वो बात गई लेकिन जब वही बीती बात कोई अपने अंदाज में बयां करता है तो वो विवाद को जन्म देने का काम करता है।कुछ ऐसा ही काम किया संजय लीला बंसाली ने एक तो उन्होंने इतिहास के पन्नो से छेड़छाड़ की फिर उन को तमाशा बना के सबके सामने परोसने को तैयार हो गए बावजूद इसके के इसको लेकर वो खुद इसके आक्रोश का शिकार हो चुके थे फिर भी उसी प्रोजेक्ट पर बिना नाराज़ पक्ष से बातचीत किये हुए ऐसा समां बांध लिया कि आज उसी आक्रोश ने उग्र रूप ले लिया जिसमे कितना नुकसान हुआ इसका कोई आंकलन नही।
कोई भी फ़िल्म मात्र इसलिए बनाई जाती है क्योंकि लोग उसे देख कर मनोरंजन करते है फ़िल्म में नाच गाना मसाला सब होता है और ये लोगों को एक हद तक पसंद भी आता है पर इतिहास के पन्नो से किसी वीरांगना को निकालकर उनसे पैसा कमाना ये कैसी विडंबना है जिस वीरांगना की हम बात इतिहास से जानते थे उनको फिल्मी पर्दे पर उतार कर अपने हिसाब से चलाना ये कैसा प्रोजेक्ट है।
ज़ाहिर है हम में से कोई भी नही चाहेगा कि कोई हमारे अतीत को अपने अंदाज में हमारे सामने लाये वो भी तमाशा बनाकर लेकिन यहां एक बात ये भी है कि किसी एक कि गलती की सज़ा निर्दोष लोगों को क्यों दी जा रही है जिनका उससे दूर दूर तक कोई लेना देना नही।
हम यहां हिंसा के समर्थक के रूप में बात नही कर रहे हम हिंसा का विरोध करते हैं पर हम बंसाली के पक्षधर भी नही है।हम जब इतिहास को बदल नही सकते तो उसमें छेड़छाड़ करने का हक़ भी हमे नही है।