लखनऊ,दीपक ठाकुर। हमारा शहर यातायात संसाधनों की भरमार की वजह से हमेशा फसा हुआ लगता है मतलब शहर की सड़कों पर अक्सर कुछ मिलता है तो वो है जाम ,और जाम भी ऐसा की मिनटों का रास्ता घण्टों में तब्दील हो जाता है।
वैसे तो हमारे शहर में यातायात संसाधनों की कोई कमी नही है बस है टैक्सी है रिक्शा है मतलब हर वो ज़रूरी चीज़ मौजूद है जिससे हम वाया सड़क कम दूरी आराम से तय कर सकते है मगर इतने के बावजूद भी पिछली सरकार ने रोजगार के नाम पर एक ऐसी सुविधा जारी कर दी जो सुविधा कम जोखिम ज़्यादा साबित होने लगी है ये काम सिर्फ पिछली सरकार ने ही नही किया हमारे प्रधानमंत्री भी इस दौड़ में उनके साथ खड़े दिखाई ढ़िये सबने खूब इरिक्शा बांटे और अपना अपना प्रचार किया।
इरिक्शा खतरनाक क्यों है अब आप ये भी जान लीजिए एक तो मुफ्त के बाद कम लागत से मिलने वाला इरिक्शा बनावट की दृष्टि से काफी संवेदन शील है छोटे तीन पहिये वो भी पतले ऊपर बस स्टील की हल्की परत चार हल्के लोहे के पाइप उसके ऊपर रबड़ की चादर हो गया आपका ई रिक्शा तैयार।
अब एक बात ये के वैसे ही यहां का आदमी जाम से त्रस्त था उसपर से एक और साधन आ गया हल्का फुल्का और तो और ज़्यादा कमाने की होड़ में ओवरलोडिंग तो ऐसी की पूछिये मत ड्राइवर को मिला के ग्यारह लोग खतरा मोल लेते है वजन कम होने के कारण आये दिन रिक्शा पलटने की बात सामने आती है बगल से भारी वाहन तेज़ निकल जाए तो कांपने लगता है बताइये ऐसे रोजगार से क्या फायदा जिसमे हर पल खुद का भी जोखिम हो और यात्रियों का भी।
तो कहना सिर्फ इतना था कि सरकार चाहे जो हो अगर वो वास्तव में लोगों को रोजगार देने पर संजीदा तो ज़रा सोच समझ कर योजना लानी चाहिए ताकि आपकी वाह वाही दूसरों की जान की दुश्मन ना बन जाये।
हमारे शहर में सड़क का हाल क्या है ये आपलोगों से बेहतर वो जनता है जो वी आई पी नही है आपके लिए तो रास्ते साफ किये जाते है तब आप तेज़ रफ़्तार से निकल जाते है हम वही हैं जो रोड के किनारे खड़े रह कर आपकी योजनाओं के कारण बड़ी मुश्किल से अपनी मंज़िल तक पहुंच पाते हैं।