दक्षिण भारत के दो राज्यों में भाजपा और उसकी सहयोगी पार्टी एक अलग किस्म की मुश्किल से जूझ रहे हैं। कर्नाटक में सबसे ताकतवर समुदाय ने अपने लिए अलग धर्म की मांग की है तो आंध्र प्रदेश में सबसे मजबूत जाति ने अपने लिए आरक्षण मांगा है। गौरतलब है कि कर्नाटक में अगले साल विधानसभा के चुनाव होने वाले हैं। उससे पहले लिंगायत समुदाय के लोग एकजुट हो रहे हैं और वे अपने लिए अलग धर्म चाहते हैं।
ध्यान रहे लिंगायत कर्नाटक में सबसे मजबूत समुदाय है और पूर्व मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा इसी समुदाय से आते हैं। उन्होंने भाजपा से अलग होकर अपनी पार्टी बना ली थी तो यह समुदाय भाजपा से अलग हो गया था और पिछले चुनाव में भाजपा की हार का एक बड़ा कारण यह भी था। बाद में वे फिर भाजपा में लौट आए और सांसद बनए गए। अब पार्टी ने उनको प्रदेश अध्यक्ष बना दिया है। मुश्किल यह है कि अगर लिंगायत अपने को अलग धर्म की मांग तेज करते हैं तो हिंदू धर्म के आधार पर ध्रुवीकरण का प्रयास शिथिल होगा। उलटे हिंदू और लिंगायत में दूरी बढ़ेगी। इससे भाजपा को नुकसान हो सकता है।
आंध्र प्रदेश में भाजपा की सहयोगी टीडीपी के सामने कापू समुदाय ने मुश्किल खड़ी की है। पिछले चुनाव में कापू उनके साथ थे। आमतौर पर टीडीपी को दूसरे बड़े समुदाय कम्मा का समर्थन मिलता है। चंद्रबाबू नायडू खुद कम्मा समुदाय से आते हैं। दूसरी ओर कांग्रेस के नेता चिरंजीवी कापू समुदाय से आते हैं। अब कापू आरक्षण मांग रहे हैं। चूंकि केंद्र व राज्य दोनों जगह एक ही सरकार है इसलिए भाजपा और टीडीपी पर दबाव है। विपक्ष इसका फायदा उठाने का प्रयास कर सकता है।