लखनऊ,न्यूज़ वन इंडिया। प्रदेश में भले ही सरकार बदल रही हो लेकिन अधिकारियों का रवैया नहीं बदल रहा है।इस बार प्रदेश की संस्कृति की रक्षा करने वाले विभाग पर ही लाखों के घोटाले का आरोप लगा है। ये आरोप कितने सच हैं इस बात पर कुछ नहीं कहा जा सकता लेकिन विभाग के जिम्मेदार अधिकारियों के बयान से से साफ है कि दाल में कुछ काला जरूर है।
प्रदेश सरकार के मंत्री और अधिकारी आम आदमी की समस्याओं को लेकर कितना गंभीर होते हैं और उन्हें प्रदेश व समाज के उत्थान की वाकई कितनी चिंता रहती है।हम आपकेा इसका सच बताते हैं। मामला है प्रदेश सरकार के संस्कृति विभाग का। राजधानी लखनऊ के कैसरबाग इलाके में प्रदेश की संस्कृति और रंगकर्मियों के लिये करीब 200 साल पहले राय उमानाथ बली प्रेक्षाग्रह का निर्माण किया गया था। जहाॅं आज भी सिर्फ लखनऊ ही नहीं प्रदेश भर से रंगकर्मी और कलाकार अपने हुनर और सांस्कृतिक कार्यक्रमों का रिहर्सल और मंचन करते हैं लेकिन अधिकारियों की मनमानी का आलम ये है कि यहां की बिल्डिंग जर्जर होकर गिरने वाली है इसबात को लेकर रंगकर्मी करीब सालभर से सरकार से गुहार लगा रहे हैं लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई। इतना ही नहीं अब तो हाल ये है कि इस ऐतिहासिक इमारत परिसर में पीने के पानी तक का इंतजाम नहीं है।और रंगकर्मी धरना – प्रदर्शन के लिये मजबूर हैं। इस बारे में जब संस्कृति विभाग के निदेशक डा0 हरिओम से पूछा गया तो डाइरेक्टर साहब का कहना है कि विभाग के पास पैसा नहीं था इसलिये 90 हजार वहां की मरम्मत के नाम पर दिया गया था अब अगले साल फिर देखा जायेगा।
चलिये अब आपको बताते हैं कि असली खेल है क्या ।संस्कृति विभाग के निदेशक का कहना है कि सांस्कृतिक क्रियाओं की रक्षा करने के लिये उनके पास एक लाख भी नहीं है।जबकि लखनऊ में विभाग द्वारा तीन दिवसीय संस्कृति उत्सव का आयोजन किया जा रहा है जिसके लिये विभाग द्वारा करीब 42 लाख रूप्ये खर्च किये जा रहे हैं।और ये बात भी खुद संस्कृति विभाग के निदेशक बता रहे हैं।
अब आइये आपको अधिकारियों का खेल दिखाते हैं यूपी संस्कृति विभाग के निदेशक डा0 हरिओम खुद अपनी ही पत्नी को संस्कृति उत्सव में कलाकार के लिये भी सेलेक्ट किये हैं जिन्हे बाकायदा विभाग द्वारा पैसे का भुगतान किया जायेगा निदेशक साहब की पत्नी का नाम है श्रीमती मालविका जबकि इस बात को विभाग द्वारा जारी विज्ञप्ति में छुपा लिया गया है और नाम लिखा गया है सुश्री मालविका।आखिर श्रीमती को सुश्री लिखने की जरूरत क्यों आ पड़ी? वहीं विभाग द्वारा जारी कार्ड की लिस्ट में सुश्री और श्रीमती दोनों को हटाकर डा0 मालविका लिखा गया है।लखनऊ के वरिष्ठ रंगकर्मियों का आरोप है कि उत्सव के नाम पर अधिकारी 42 लाख का घोटाला कर रहे हैl
फिलहाल ये आरोप सच हैं या गलत ये जांच का विषय है लेकिन एक बात साफ है कि एक तरफ विभाग के पास अपने सांस्कृतिक साधनों को संजोने के लिये एक-दो लाख रूप्या नहीं है तो वहीं उत्सव के नाम पर 42 लाख रूप्ये कहां से खर्च किये जा रहे हैं क्या सिर्फ उत्सव के आयोजनों से ही प्रदेश और देश की संस्कृति को हम बचा पायेंगें? हमें उम्मीद है कि इस खबर से जिम्मेदार अधिकारी जरूर जागेंगें और कार्यवाई करेंगें……( खबर वरिष्ठ पत्रकार अनूप त्रिपाठी द्वारा एकत्र की गई है)